सेरीखेड़ी की माताओ ने कमरछठ व्रत रखकर अपने संतान के स्वास्थ व दीर्घायु के लिए किया पूजन

धरसींवा रायपुर- युवा एकता संघ सचिव हुलास साहू ने कहा कि भारतीय संस्कृति में यू तो पर्वो का अपना अलग – अलग महत्व है। इन्ही पर्वो में से एक कमरछठ (हलषष्ठी) पर्व जिनमे माताएं संतान की स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि व दीर्घायु के लिए व्रत रखकर प्रार्थना करती है। साहू जी ने बताया कि हमर छत्तीसगढ़ी में माताओं के लिए एक कविता है

महुआ के पतरी म, पसहर के भात।
मिंझर के चुरहि, भाजी के छै जात।।
भइस के दही संग, पाबोन परसाद।
दाई पोता मार के, दिही आसिरबाद।।
महतारी मन लइका खातिर, करे हे उपास।
जुग जुग जिए मोर लइका, अइसे हे बिस्वास।।
महतारी मन के सदा, सजे रहय सिंगार।
जम्मो झन बर सुग्घर हो, कमरछठ के तिहार।

नवा रायपुर के समीप ग्राम सेरीखेड़ी में कमरछठ पर्व को बुधवार को गाँव के समस्त माताओ ने कर्मा माता मंदिर प्रांगण में सामूहिक रूप पूजा अर्चना कर मनाया। भाद्र पद कृष्ण पक्ष-6 को माताओं ने अपने संतान की लंबी उम्र की मनोकामना के लिए उपवास रहकर मिट्टी से निर्मित भगवान शंकर, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी के साथ बांटी, भौरा एवं रोड़ी का भी शगरी बनाकर पूजा-अर्चना किया एवं कनेर, धतूरा, मंदार, बेलपत्ति, सफेद फूल आदि विशेष रूप से भगवान को चढ़ाया, आज के दिन महिलाएं प्रसाद के रूप पसहर चावल, भैसी का दूध, दही, मुनगे की भाजी, जरी भाजी सहित 6 प्रकार की भाजी पूजन पश्चात ग्रहण करती है इस व्रत में माताएं हल द्वारा उत्पन्न खाद्य फसल से परहेज करती है।

कमरछठ( हलषष्ठी ) पर्व मनाने के पीछे प्राचीन मान्याताओं की जानकारी देते हुए गाँव माताएं सीमा साहू, भारती साहू, लीना साहू, नर्मदा साहू, धनेश्वरी साहू, तारणी साहू, परमेश्वरी पाल, लोकेश्वरी साहू ने बताया कि राजा सुभद्र ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए तालाब खुदवाया लेकिन उस तालाब से पानी नही निकला तो वे बहुत चिंतित हुए, इसी बीच राजा की पुत्रवधू अपने दोनों पुत्रों को छोड़ मायके चली जाती है उसके बाद राजा को वरुण देव स्वप्न दिया की हे राजन तुम अपने बड़े पुत्र के बड़े बेटे का बलि दोगे तभी तालाब में पानी आएगा, राजा ने प्रजा की भलाई के लिए अपने नाती का बलि दे देता है जिससे तालाब में पानी भर जाता है, वही दूसरी ओर राजा की पुत्रवधू उस घटना से अनजान अपने मायके से लौटते समय उसी तालाब के पास रुककर शंकर, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना करती है जिससे उनका पुत्र पुनः जीवित हो तालाब से निकल कर उनकी गोद मे आ जाती है इन्ही मान्यताओं के आधार पर माताएं अपने संतान की दीर्घायु के लिए कमरछठ का पर्व मनाती है लाई का प्रसाद प्रदान करती है जिससे उनकी संतान कोभगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है