वेसी योग –
परिभाषा -जिस जातक की कुंडली में जिस भाव सूर्य स्थित हो , उससे दुसरे भाव में यदि मंगल, बुध, गुरु, शुक्र या शनी इन पांच ग्रहों में से कोई एक ग्रह हो तथा १२ वे भाव में कोई भी ग्रह नहीं होतो, यह योग बनता है।
फल – जब सूर्य से दुसरे भाव में शुभ ग्रह बुध, गुरु शुक्र , होतो शुभ वेसी योग बनता है जिसके प्रभाव से जातक सोम्य प्रक्रति का होता है। साथ ही वाणी भी प्रभावशाली होती यह जातक अपनी वाणी के द्वारा विश्वास जमाकर उच्च स्तर की सफलता प्राप्त करता है। तथा शत्रुओं पर विजय पाता है।
अशुभ वेसी योग- जब सूर्य से दुसरे भाव में मंगल अथवा शनी होतो यह योग बनता है , जिसके फल से जातक कुसंगति में पड़ जाता है। उसके मस्तिष्क सदा ही कुचक्र बनते रहते है। यह जातक अपने दुष्कर्मो के कारण बदनाम भी होता है
विशेष – यदि सूर्य से दुसरे भाव में शुभ और पाप ग्रह दोनों ही होतो जातक को मिश्रित फल मिलते है।
विशेष -इन ग्रहों के बलवान होने पर ही यह फल पूर्ण रूप से घटित होगा , अन्यथा कुछ मात्रा में फल जरूर मिलेगा।
वासि योग –
परिभाषा- जिस जातक की कुंडली में सूर्य से १२ वे भाव में मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि इन ५ ग्रहों में से कोई ग्रह हो, तथा सूर्य से २ रे भाव में कोई ग्रह नहीं होना चाहिए तभी यह योग बनता है।
परिणाम -यदि सूर्य से १२ वे भाव में शुभ ग्रह बुध , गुरु, शुक्र होतो, शुभ वासि योग होता है जिसके परिणाम स्वरूप जातक बुद्धिमान , गुणी , चतुर, सदा ही प्रसन्न चित्त तथा अपने कार्यों में होशियार ही। साथ ही यह जातक पूर्ण पारिवारिक सुख प्राप्त करता है।
२. यदि सूर्य से १२ वे भाव में अशुभ ग्रह मंगल, शनि होतो अशुभ वासि योग बनता है जिसके फल स्वरूप जातक क्रूर तथा हिंसक स्वभाव का होता है। साथ इस जातक का मन सदा ही अशांत तथा दुखी जीवन जीने के लिए मजबूर होता है।
३. यदि सूर्य से १२ वे भाव में शुभ तथा अशुभ दोनों ग्रह होतो जातक को मिश्रित फल मिलते है।
विशेष -इन ग्रहों के बलवान होने पर ही यह फल पूर्ण रूप से घटित होगा , अन्यथा कुछ मात्रा में फल जरूर मिलेगा।
उभय चरिक योग-
परिभाषा -जिस जातक की कुंडली में सूर्य से २ रे तथा १२ वे भाव दोनों भावों में मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, तथा शनि में से कोई भी ग्रह होतो, उभय चारिक योग बनता है। यह योग दो प्रकार से बनता है १. जब शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र सूर्य से २ रे तथा १२ वे भाव में होतो शुभ उभय चरिक योग बनता है। जिसके फल स्वरूप जातक सहनशील , न्यायशील तथा कार्यकुशल होता है। शरीर पुष्ट तथा मन स्थिर होता है।
२. जब सूर्य से २ रे तथा १२ वे भाव में मंगल या शनि में से कोई भी ग्रह होतो यह जातक असत्यवादी, कपटी, निर्धन, होता है। यदि सूर्य से २ रे तथा १२ वे भाव में शुभ, अशुभ दोनों ग्रह होतो फल मिश्रित होता है।
विशेष -इन ग्रहों के बलवान होने पर ही यह फल पूर्ण रूप से घटित होगा , अन्यथा कुछ मात्रा में फल जरूर मिलेगा।
बुधादित्य योग –
परिभाषा – जिस जातक की कुंडली में सूर्य बुध की युति एक ही भाव में होने से बुधादित्य योग का निर्माण होता है।
विशेष-यदि सूर्य और बुध में १० अंश से अधिक दूरी होतो, यह योग ज्यादा प्रभाव शाली होता है।
परिणाम – इस योग में जन्म लेने वाला जातक बहुत बुद्धिमान , चतुर कार्यकुशल , लोकप्रिय, सुखी तथा विख्यात होता है। यह जीवन की प्रत्येक कठिन समस्याओं को अपनी चतुराई से सुलझाने में माहिर होता है।
विशेष – जिस जातक का सिंह लग्न हो और सूर्य बुध की युति प्रथम , द्वितीय, चतुर्थ, पंचम , सप्तम , नवम, दशम अथवा ग्यारहवे भाव में होतो , जातक करोडपति होता है
विशेष -इन ग्रहों के बलवान होने पर ही यह फल पूर्ण रूप से घटित होगा , अन्यथा कुछ मात्रा में फल जरूर मिलेगा।
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भविष्यवक्ता
(पं.) डॉ. विश्वरँजन मिश्र, रायपुर
एम.ए.(ज्योतिष), रमलाचार्य, बी.एड., पी.एच.डी.
मोबाईल :- 9806143000,
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