मानसिक प्रताड़ना से त्रस्त होकर अतिथि व्याख्याता ने सौंपा त्याग पत्र

 अम्बिकापुर– महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक के रिक्त पदों के स्थान पर अध्यापन कार्य के लिए अतिथि व्याख्याताओं की नियुक्ति की जाती है, जिन्हें अधिकतम 4 कालखण्ड का ही वेतन दिया जाता है। इसके बावजूद अतिथि व्याख्याताओं को सात घंटे तक महाविद्यालय में रोकना अब प्रचलन में है।

शासकीय महाविद्यालय बिश्रामपुर के प्राचार्य, समिति और कार्यलयीन लिपिक द्वारा अतिथि व्याख्याताओं को हरसंभव तरीके से त्रस्त किया गया है।

आमंत्रण पत्र के बाद, अगले दिन कार्यभार ग्रहण करवाया गया, जबकि जिले के अन्य महाविद्यालय में 03/09 को ही नियुक्त किया दिया गया था। इस सत्र में सिविल सेवा नियम का हवाला देकर अतिथि व्याख्याताओं के कालखंड 11:00 से 04:30 तक समय सारणी में रखा गया है।

महाविद्यालय में सिर्फ अतिथि व्याख्याताओं के विषय में दैनिक उपस्थिति पंजी के साथ साथ प्रपत्र में छात्रों के हस्ताक्षर की बाध्यता लागू की गई है। इस की वजह से एक तो अध्यापन कार्य बाधित हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ छात्रों की संख्या में भारी कमी आ गई है।

इस मौखिक नियम का मौखिक विरोध अतिथि व्याख्याताओं एवं छात्रों द्वारा लगातार किया जाने के बावजूद भी प्राचार्य कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। वहीं दूसरी ओर बजरंग दल बिश्रामपुर का हस्तक्षेप होने पर जनभागीदारी समिति के नेताओं ने बैठक आयोजित कर सभी नियमों पर सहमति जताई है। एक नेता ने तो हिदायत भी दिया कि तुम्हें सभी छात्रों से हस्ताक्षर करवाना है और करवाना पड़ेगा, तुम्हें परेशानी किस बात की है सरकार तुम्हें हस्ताक्षर करवाने की पैसा देगी। सत्ता दल के जनप्रतिनिधियों में इतना गुरूर था कि किस तरह अतिथि व्याख्याता से पेश आना चाहिए ये भी भूल गए और हशी ठिठोली करते नजर आए।

बैठक में जिस नियम का हवाला दिया गया है उस नियम की धज्जियां महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक  प्रदीप श्रीवास्तव एवं अन्य उड़ा रहे हैं। सहायक प्राध्यापकों को जिला मुख्यालय में निवास करना, न्यूनतम पांच कक्षाएं पढ़ाना तथा 07 घंटे की सेवा देना अनिवार्य है। इसका पालन न प्राचार्य कर रहे है और ना ही कोई भी सहायक प्राध्यापक। जबकि इन्हें लाखों रूपये वेतन दिया जाता है, वही अतिथि व्याख्याताओं से दिहाड़ी मजदूरों की तरह काम करा कर असम्मानजनक व्यवहार किया जा रहा है।

अंकुश सिंह ने बताया कि
न्यायादेश पर नियुक्ति अध्यापन के लिए की गई है। लेकिन अध्यापन छोड़कर हस्ताक्षर कराना अनुचित है। प्राचार्य, सहायक प्राध्यापकों, लिपिक एवं जनभागीदारी के कुछ नेताओं द्वारा कैबिनेट मंत्री के नाम पर अमानवीय व्यवहार एवं प्रताड़ित किया जा रहा है।

31 जुलाई के जनचौपाल कार्यक्रम में अतिथि व्याख्याताओं की ओर से अंकुश सिंह ने नामजद आवेदन दिया था। जिसकी वजह से भी कुछ नेताओं को नाराजगी है। इन सब से तंग आकर अतिथि व्याख्याता के पद से स्तिफा देने को मजबूर हो गए।