सरपंच व सचिव खुद नही चाहती कि आम जनता अपनी विशेष अधिकार का उपयोग ग्रामसभा में करे – धर्मेंद्र बैरागी

स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की बेरुखी से फ्लॉप हो रही है ग्राम सभाएं – हुलास साहू

रायपुर-गांधी जंयती के अवसर पर 2 अक्टूबर को हुई ग्राम सभाएं जनप्रतिनिधियों की ही बेरुखी के कारण फ्लॉप साबित होती आ रही है सभी ग्राम पंचायत सरपंच , उपसरपंच, वार्ड पंच , पंचायत सचिव के होते हुए आम जनता को सूचना नही मिल पाती की ग्राम सभा होनी है कहा जाता है कि मुनादी हुई जब जनता को पूछोगे तो पता चलता है कब मुनादी किया पता ही नही चला कि ग्राम सभा होगी। ग्राम पंचायत खुद नही चाहती कि शासकीय फंड का उपयोग की समीक्षा आम जनता करें। जिस प्रकार पत्रिका अखबार में प्रकाशित खबर में ग्रामिणों की बेरुखी से ग्रामसभा असफल बताया गया है जो घोर निंदनीय है। युवा एकता कल्याण संघ सचिव हुलास साहू, मार्गदर्शक धर्मेंद्र बैरागी घोर निंदा करते हुए कहा कि कम से कम पत्रकार साथी जनता की साथ नही देना है न दे लेकिन जनता को अधिकार बताने की आड़ में आम जनता को गलत भी साबित नही करें।

गौरतलब है कि सरपंच-सचिव ये चाहते ही नहीं कि आम आदमी ग्रामसभा में पहुंचे और वहां आय-व्यय का लेखा-जोखा मांगें। रही बात विशेष अधिकार का तो वो कौन सा ग्राम पंचायत है जो एक आम इंसान को पंचायत में हुए आय-व्यय का लेखा-जोखा देता है? देखने में आता है कि ग्रामसभा कमरे या बंद बरामदा में ही संपन्न किया जाता है न कि चौपाल में। और जब आय-व्यय का लेखा-जोखा पूछे जाने पर गोलमोल जवाब दिया जाता है और आर टी आई से जानकारी लेने सलाह दी जाती है। अगर जनप्रतिनिधि व स्थानिय प्रशासन चाहे तो ये पंचायती राज व्यवस्था का गांधीजी की सपना को पूरा किया जा सकता है लेकिन ये चाहते ही नहीं। यह बात सही की ग्राम सभा जनता की उपस्थिति बहुत कम होती है इसका एक कारण यह है कि जनप्रतिनिधि अपने पक्ष के लोगो को ग्राम सभा मे उपस्थित करा लेते है और खानापूर्ति कर ली जाती है ग्राम सभाएं सुव्यवस्थित रूप चल सके इसकी जिम्मेदारी जनपद पंचायत के अधिकारियों की होती है लेकिन सब मनमानी अधिकारियों के नाक के नीचे महज खानापूर्ति की जाती है। और आम जनता को अपना अधिकार पाने के लिए ब्लाक व जिला पंचायत का मजबूरन चक्कर लागाना पड़ता है जनप्रतिनिधि नही चाहती कि आम आदमी अपना विशेष अधिकार की ताकत समझे।

प्रत्यक्ष उदारहण देख सकते है ग्राम बांगोली में आज आनलाईन लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है लेकिन यह सच नहीं है कि जो दिखाई गई है वो सही है। तिल्दा ब्लाक के ग्राम पंचायत बंगोली में देखने को मिल रहा है, आनलाईन लेखा-जोखा वर्ष 2015-16 देख लें व स्थल निरीक्षण कर देखें तो पता चलेगा कि उक्त निर्माण कार्य हुआ ही नहीं है। तीन बार शिकायत जांच के बावजूद सरपंच-सचिव सही जानकारी नहीं दे पाए जिसके लिए सख्त कार्रवाई की जाने की बात कहते हुए ब्लाक अधिकारी ने सात दिन में सही जानकारी देने नोटिस जारी किया गया तब जानकारी दी गई कि अन्य मद में व्यय की गई है । तो क्या ये सब साधारण सी बात है? क्या आनलाईन लेखा-जोखा अलग और रोकड-बही में अलग आय-व्यय का दिखना सही है?