फिल्म के बारे में वरुण का कहना है कि यह उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है। उन्होंने कहा, ‘एक सिपाही का किरदार निभाना हमेशा से मेरा सपना रहा है। अरुण खेत्रपाल की कहानी सुनने के बाद मैं यह सोच कर हैरान हो गया था कि ऐसा सच में हुआ था। फिर मुझे समझ आया कि दीनू (दिनेश) और श्रीराम इस फिल्म को लेकर इतने उत्साहित क्यों है। अरुण के भाई मुकेश से मिलने के बाद मैं हिल गया था क्योंकि मेरा भी एक भाई है और उनका दुख मैं समझ सकता हूं।’
वरुण ने कहा, ‘यह कहानी लोगों तक पहुंचानी है और इसे सही तरीके से बताना हमारी जिम्मेदारी है। निर्देशक श्रीराम पिछले 6 महीनों से इस कहानी पर काम कर रहे हैं ताकि वह इसके साथ न्याय कर सकें।’ डायरेक्टर श्रीराम राघवन ने कहा, ‘1971 के बसंतर युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की बहादुरी जगजाहिर है। 1971 के युद्ध के समय मैं बच्चा था लेकिन खिड़कियों पर काले कागज चिपकाने जैसी धुंधली यादें अभी भी ताजा हैं। इसलिए जब दिनेश ने इस कहानी पर फिल्म बनाने की बात की तो शुरुआत में मुझे मुश्किल लगा। युद्ध के समय की कहानियां मुझे हमेशा से पसंद रही हैं इसलिए मैंने दोबारा इस पर सोचा।’
फिल्म के प्रड्यूसर दिनेश विजान ने कहा, ‘यह फिल्म एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम खेत्रपाल के परिवार और पूना रेजीमेंट के आभारी हैं कि उन्होंने हमें अरुण की कहानी बताने का मौका दिया।’ बता दें कि सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल हिंदुस्तान के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता अफसर हैं। 1971 में हुए बसंतर युद्ध में 21 साल के अरुण ने पाकिस्तान के 10 टैंक खत्म कर पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया था। हालांकि आखिरी पाकिस्तानी टैंक को नष्ट करते समय अरुण के टैंक में आग लग गई थी। सेना ने उन्हें टैंक छोड़ने का आदेश दिया लेकिन अरुण ने दुश्मन को रोकना जरूरी समझा और वह टैंक में लगी आग में घिर कर शहीद हो गए।
Source: Bollywood Feed By RSS