‘परजीवी कुंवारों’ की फौजतोक्यो के चोउ यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रफेसर मासाहिरो यमादा ने कहा कि कुंवारेपन तक माता-पिता के साथ जीवन बसर करने के रिवाज के कारण उनपर अपना जीवनसाथी ढूंढने का दबाव कम होता है। उन्हें लगता है कि ऐसे किसी के साथ रिलेशनशिप में पड़ना वक्त की बर्बादी है जो उनकी जरूरतें पूरी नहीं कर सकता और अच्छी जिंदगी नहीं दे सकता। प्रफेसर मासाहिरो ने कहा कि वो ‘परजीवी कुंवारे’ हैं। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, पती-पत्नी के रिश्ते में दीर्घकालीन वित्तीय सुरक्षा का अपना महत्व है, लेकिन विवाह के बाद मां-पिता से अलग होकर नए घर का खर्च उठा पाना बहुत मुश्किल हो रहा है।’
बुजुर्ग माता-पिता की चिंता
74 वर्षीय एक बुजुर्ग ने अपने 46 वर्षीय पुत्र के लिए जीवनसाथी ढूंढने में एक अलग तरह की समस्या बताई। उन्होंने कहा, ‘मेरा बेटा एक सेल्समैन है। वह ग्राहकों से डील करने में माहिर है, लेकिन महिलाओं के सामने वह बहुत संकोच करता है।’ आखिर उनका बेटा घर क्यों नहीं बसा रहा है? क्योंकि उसे अपने धंधे से ही फुर्सत नहीं है। इसी बुजुर्ग ने बताया कि उनकी सबसे बड़ी बेटी का ब्याह तो हो चुका है, लेकिन अमेरिका में रह रही उनकी सबसे छोटी बेटी 34 साल की हो गई है और अब भी कुंवारी है। उन्होंने कहा, ‘मुझे उसकी चिंता होती है क्योंकि मुझे पता चला है कि महिला डॉक्टरों को अपना जीवनसाथी चुनने में बड़ी मुश्किल होती है।’
शानो-शौकत वाली जिंदगी की लालसा
चुक्यो यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रफेसर शिगेकी मात्सुदा ने बताया, ‘जापानी महिलाएं ऐसे पुरुषों की तलाश में होती हैं जो स्थायी रोजगार हो और अच्छे पढ़े-लिखे हों, कम-से-कम उससे ज्यादा।’ उन्होंने कहा, ‘जब तक महिलाएं उन पुरुषों से भी विवाह करने को तैयार नहीं होंगी जिनकी कमाई उनसे कम है, तब तक कुंवारेपन की मौजूदा स्थिति में कमी नहीं आएगी।’
जापान के लोग कामकाज के प्रति बेहद समर्पित होते हैं। यह अति कामकाजी प्रवृत्ति भी कुंवारेपन की समस्या का एक बड़ा कारण है। कई लोगों को ऑफिस में भविष्य का जीवनसाथी मिल जाता है, लेकिन काम के कारण उन्हें विवाह के बंधन में बंधने का वक्त ही नहीं मिलता है।
बिगड़ रही है जॉब सिक्यॉरिटी की स्थिति
दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध में तबाही झेल चुके जापान ने बड़े-बड़े उद्योगों के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था सुधारी। उन उद्योगों ने वैसे कर्मचारियों को तवज्जो दिया जो काम के प्रति समर्पित हों। बदले में उन्हें जॉब सिक्यॉरिटी मिलती रही, लेकिन अब ऐसा माहौल नहीं रहा। जॉब सिक्यॉरिटी में तेजी से गिरावट आ रही है। जापान के श्रम मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 1990 के पूर्वार्ध से लेकर अस्थायी और ठेके पर रखे गए कर्मचारियों का औसत 15 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।
Source: International