मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने परिवार नियोजन प्रोग्राम में पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने के लिए मेल मल्टी पर्पस हेल्थ वर्कर्स के लिए नया आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि जो भी मेल वर्कर 2019-20 में एक भी पुरुष की नसबंदी नहीं करवा सका है उसका वेतन वापस लिया जाए। इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ऐसे वर्कर्स जो भविष्य में दिए गए टारगेट को पूरा नहीं करेंगे, उन्हें भी दिया जाएगा। आपको बता दें कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक सूबे में सिर्फ 0.5 प्रतिशत पुरुषों ने ही नसबंदी करवाई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट का हवाला देते हुए सूबे के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने जिलाधिकारियों, चीफ मेडिकल ऐंड हेल्थ ऑफिसरों से ‘जीरो वर्क आउटपुट’ देने वाले कर्मचारियों की पहचान करने को कहा है। अधिकारियों से कहा गया है कि ‘नो वर्क नो पे’ के सिद्धांत पर काम किया जाए। साथ ही आगे के लिए कहा गया है कि विभाग के पुरुष कर्मियों को परिवार नियोजन प्रोग्राम के तहत नसबंदी का टारगेट दिया जाए।
आपको बता दें कि वर्तमान में राज्य की आबादी 7 करोड़ से अधिक है। प्रदेश में 25 जिले ऐसे हैं, जहां का टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) तीन से अधिक है, जबकि एमपी में 2.1 टीएफआर का लक्ष्य है। ऐसे में हर साल 6 से 7 लाख नसबंदी ऑपरेशन के टारेगट होते हैं, लेकिन 20 फरवरी 2020 तक 2019-20 साल में सिर्फ 3,397 पुरुषों की नसबंदी हुई।। ऐसे मध्य प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के लिए हर महीने 5 से 10 पुरुषों का नसंबदी ऑपरेशन करवाना अनिवार्य कर दिया है।
सरकार के फैसले को लेकर कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। कर्मचारियों का कहना है कि वे घर-घर जाकर जागरूकता अभियान तो चला सकते हैं, लेकिन किसी का जबरन नसबंदी ऑपरेशन नहीं करवा सकते। गौरतलब है कि पिछले पांच वर्षों में मध्य प्रदेश में नसबंदी कराने वाले पुरुषों की संख्या लगातार घट रही है। हैरान करने वाली बात यह है कि 20 फरवरी 2020 तक 2019-20 साल में नसबंदी कराने वाली महिलाओं की संख्या 3.34 लाख रही।
Source: Madhyapradesh