मोदी-नोमिक्स: 2 ट्रिलियन डॉलर के बैंकिंग क्षेत्र को तहस नहस करने की केस स्टडी

मोदी सरकार ने पब्लिक सेक्टर के बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों को नष्ट किया

देेेश की आर्थिक स्थिति पर प्रदेश कांग्रेस की प्रतिक्रिया देते हुुुयेे  शैलेश नितिन त्रिवेदी, अध्यक्ष कांग्रेस संचार विभाग  ने कहा है कि आज प्रधानमंत्री भारत के बैंकिंग क्षेत्र के सीईओ एवं अधिकारियों से मिले। हमें उम्मीद है कि उन्होंने साहस करके प्रधानमंत्री जी को यह बताया होगा कि भाजपा सरकार ने किस प्रकार बैंकिंग सेक्टर एवं वित्तीय संस्थानों को नष्ट कर दिया।

यदि सच्चाई को सुनने की प्रधानमंत्री की अनिच्छा के चलते उन्होंने चुप्पी भी साध ली हो, तो भी पिछले एक हफ्ते में घटित तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ भारत के वित्तीय प्रणाली और बैंकिंग क्षेत्र की दयनीय स्थिति को प्रदर्शित करती हैं:-

पहला- रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने जुलाई, 2020 में वित्तीय स्थिरता (फाईनेंशल स्टेबिलिटी) रिपोर्ट जारी की, जिसमें चेतावनी दी गई कि बैंकिंग सेक्टर के खराब ऋण ‘20 साल में सबसे ज्यादा’ हो सकते हैं।

दूसरा – पूर्व आरबीआई गवर्नर, डॉक्टर उर्जित पटेल ने खुलासा किया कि आरबीआई लोन डिफॉल्टर्स के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहते थे, लेकिन मोदी सरकार चाहती थी कि वो लोन डिफॉल्टर्स के खिलाफ नरम रहें और इसी कारण उन्हें मजबूर होकर अपना इस्तीफ़ा देना पड़ा।

तीसरा – आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर, डॉक्टर विरल आचार्य, ने एक किताब में संपूर्ण वित्तीय क्षेत्र को ‘अस्थिर’, ‘जोखिमपूर्ण बनाने’ एवं ‘ढहने के कगार’ (‘unstable’, ‘risky’ and ‘verge of collapse’) पर पहुंचाने के भाजपा सरकार के कुप्रबंधन का खुलासा किया।

मोदी सरकार में भारत के वित्तीय क्षेत्र के पतन की कहानी

  1. ‘‘खराब ऋणों’’ की बाढ़

मार्च, 2013-14 में एनपीए 2,16,739 करोड़ रु. (कुल का 3.8 प्रतिशत) के बराबर था, जो  सितंबर, 2019 में बढ़कर 9,35,000 करोड़ रु. (9.1 प्रतिशत) हो गया।

आरबीआई की जुलाई, 2020 की ‘‘ वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट’’ के मुताबिक बैंकिंग सिस्टम में खराब ऋण बढ़कर 20 साल में सबसे ज्यादा 14.7 प्रतिशत तक पहुंच सकते हैं। खराब ऋणों’ में इतनी ज्यादा बढ़ोत्तरी कैसे हुई? 

  1. संदेशवाहक को सजा- बैंक डिफॉल्टर्स को सुरक्षा

ऑल इंडियन बैंक एम्प्लॉईज़ एसोसिएशन (‘‘एआईबीईए’’) ने 2,496 ‘विलफुल डिफॉल्टर्स’ (जानबूझकर पैसा न देने वालों) की सूची तैयार की, जिनके द्वारा कुल 1,47,000 करोड़ रु. का डिफॉल्ट किया गया। इतनी बड़ी राशि को जहां मोदी सरकार तकनीकी तौर पर राईट ऑफ कर रही है, वहीं डिफॉल्टर्स की जाँच कर उन्हें दंड देने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। इसका ज्वलंत उदाहरण सबसे बड़े बैंक, एसबीआई द्वारा हर साल 1 प्रतिशत से भी कम राईट ऑफ की रिकवरी कर पाने का रिकॉर्ड है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एसबीआई को 1,23,000 करोड़ रु. राईट ऑफ करने पड़े, जबकि 8 सालों में रिकवरी केवल 8,969 करोड़ रु. की ही हो सकी।

जब आरबीआई ने पहले डॉ रघुराम राजन और बाद में डॉ उर्जित पटेल के नेतृत्व में बैंक डिफॉल्टरों से ऋण की वसूली के लिए कड़े नियमों को लागू करना चाहा, तो उन्हें मोदी सरकार ने उन्हें आरबीआई गवर्नर के पद से हटाया/इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया।

  1. रिकवरी न होने से क्रेडिट ग्रोथ शून्य

बैंकों को डिफॉल्टर्स से ऋण उगाही नहीं करने देने से बैंकों द्वारा आगे ऋण देने पर विराम लग गया। जब साल, 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई थी, उस समय बैंक की क्रेडिट ग्रोथ 14 प्रतिशत थी। आज बैंक की क्रेडिट ग्रोथ गिरकर 4 प्रतिशत रह गई है और आरबीआई की अपनी रिपोर्ट के मुताबिक यह जल्द ही शून्य पर आ जाएगी। इसका मतलब यह है कि जरूरतमंद व्यवसायों को धन उपलब्ध नहीं होगा क्योंकि बैंक उन्हें ऋण देने में संकोच करेंगे।

यही कारण है कि ‘‘एमएसएमई के लिए 3,00,000 करोड़ के गारंटीड लोन’’ की घोषणा बड़े जोर-शोर से की तो गई, लेकिन केवल 1,23,000 करोड़ रु. का ही आवंटन हुआ तथा उनमें से केवल 68,311 करोड़ रु. ही वितरित किए गए। हर जगह यही कहानी दोहराई जा रही है।

  1. ‘बैंकों के विलय’ की फ़्लॉप कहानी

लोन की नॉन-रिकवरी पर पर्दा डालने के लिए मोदी सरकार ने ‘बैंकों के महाविलय’ का प्रस्ताव दिया। ‘‘खराब ऋणों’’ पर पर्दा डालने की उम्मीद में 10 पीएसयू बैंकों का एक साथ विलय किया गया। दो ‘‘खराब बैंक’’ आपस में विलय होकर एक ‘‘अच्छा बैंक’’ नहीं बना सकते। इससे केवल एक और ज्यादा बड़ा ‘‘खराब बैंक’’ बन जाता है।

यदि हम 2014 एवं 2020 के पीएसयू बैंकों के मार्केट कैपिटलाईज़ेशन से जुड़े आकड़ों की तुलना करें तथा बीएसई-पीएसयू बैंक इंडेक्स का सापेक्ष मूल्य देखें, तो पिछले 6 सालों में इंडेक्स 2.63 प्रतिशत गिरा है, जबकि संपूर्ण बीएसई इंडेक्स सीएजीआर के आधार पर 11 प्रतिशत बढ़ा है।

यस बैंक मामला भाजपा सरकार द्वारा धोखेबाजों को बचाने के बुरे इरादों का स्पष्ट उदाहरण है। भाजपा सरकार ने अपराधियों को बचाने के लिए बैंकों के सिंडिकेट को यस बैंक को ज्यादा पैसे देने के लिए मजबूर किया, ताकि वह स्टैंड-अलोन इकाई के रूप में काम करता रहे।

  1. पूंजीपति मित्रों के लिए आईबीसी को कमजोर करना

मोदी सरकार के बेईमान इरादों के प्रमाण सामने आते जा रहे हैं। आरबीआई के पूर्व गवर्नर, उर्जित पटेल द्वारा किए गए ताजे खुलासों से साफ हो गया है कि भाजपा सरकार ने किस प्रकार इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून को कमजोर कर खराब ऋणों की उगाही करने के रिज़र्व बैंक के प्रयासों पर पानी फेर दिया। पूंजीपति मित्रों के लिए इस उदारता का रहस्योद्घाटन उस समय से हो गया था, जब डॉक्टर रघुराम राजन की पहली चेतावनी से प्रधानमंत्री जी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी थी। 60 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक भारी मात्रा में ‘‘हेयर कट’’ बैंकों की पूंजी को कमजोर करने का एक केस अध्ययन है। 

  1. ‘‘नोटबंदी’’ एवं ‘‘त्रुटिपूर्ण जीएसटी’’ की सूनामी 

मोदी सरकार ने नोटबंदी कर बैंकिंग क्षेत्र को एक तगड़ा झटका दिया था और अर्थव्यवस्था पर इसका घातक प्रभाव 8 नवंबर, 2016 की उस शाम के बाद तीन साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद भी दिखाई दे रहा है। नोटबंदी से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। करेंसी नोटों का चलन अब तक सबसे ज्यादा स्तर यानी जीडीपी के 14 प्रतिशत तक पहुंच चुके हैं। हमें नहीं पता कि यह नुक्सान पहुँचाने के लिए किया गया था या नहीं, पर सत्ता के हुक्मरानों ने रविवार, 1 जुलाई, 2017 को अर्द्धरात्रि से बिना तैयारी के एवं त्रुटिपूर्ण जीएसटी को यह कहकर प्रस्तुत किया कि इससे भारतीयों की सभी वित्तीय समस्याओं का निवारण हो जाएगा। जीएसटी का क्रियान्वयन होने के बाद इसमें सौ से ज्यादा बार संशोधन किया जा चुका है और मौजूदा समय में भारत सरकार राज्यों का पूरा हिस्सा भी जारी करने से इंकार कर रही है।

  1. ‘‘20 लाख करोड़ रु. के पैकेज’’ का छलावा

कोरोनावायरस महामारी के दौरान मोदी सरकार ने ‘‘20 लाख करोड़ के पैकेज’’ का छलावा दिया, जो महज एक खोखली औपचारिकता बनकर रह गया। नॉन-फूड क्रेडिट ग्रोथ लगभग जीरो पर है और बैंक की क्रेडिट ग्रोथ 4 प्रतिशत से गिरकर बेस लाईन ‘0’ की ओर जा रही है। बैंक पैसा वापस आरबीआई के पास जमा कर रहे हैं।

भविष्य में ‘‘आरबीआई की स्वायत्तता’’ पुनः स्थापित किए जाने की आवश्यकता है ताकि बैंक अपने डिफॉल्टर्स के पीछे जा सकें; ‘‘नो विच हंटिंग’’ के वादे के साथ बैंकों में आत्मविश्वास बहाल हो; अपने ‘जोखिम के नियमों’ के अनुरूप विश्वसनीयता के साथ ऋण दे सके तथा एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी का विस्तार हो ताकि क्रेडिट ऑफटेक को बढ़ावा मिले और निवेश में वृद्धि हो।

‘टेलीविज़न पर बातों’ की बजाय ‘डिलीवरी’ की जरूरत है।