नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज कहा कि प्रशासन सहित विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं या मातृभाषाओं का व्यापक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने से शिशु किसी भी अन्य भाषा की तुलना में विषयों को बेहतर तरीके से समझने में सक्षम होगा।
वह तेलुगु भाषा दिवस के अवसर पर ‘हमारी भाषा, हमारा समाज और हमारी संस्कृति‘ विषय पर एक बेवीनार को संबोधित कर रहे थे। इस समारोह का आयोजन दक्षिण अफ्रीकी तेलुगु समुदाय (एसएटीसी) ने किया था। लंदन, सिडनी, कैनबरा, आबु धाबी, स्काटलैंड, हांगकांग, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड एवं जर्मनी सहित दुनिया भर के तेलुगु भाषा के विशेषज्ञों एवं तेलुगू एसोसिएशन के सदस्यों ने वीडियो कांफ्रेस में भाग लिया। समारोह का आयोजन एक तेलुगु भाषाविद् और भाषा के प्रवर्तक श्री गिडुगु वेंकट राम मूर्ति की जयंती के अवसर पर किया गया था।
श्री नायडु ने जोर देकर कहा कि भाषा और संस्कृति एक सभ्यता के विकास की नींव डालती है।
तेलुगु भाषा को संरक्षित एवं सुरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि सभी तेलुगुवासियों चाहे वे भारत में रहते हों या विदेशों में, को उनकी भाषा एवं संस्कृति के संवर्धन के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने तेलुगु भाषा में सरल वैज्ञानिक शब्दावली के विकास की भी अपील की और कहा कि यह सामान्य लोगों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बेहतर समझ में सहायता करेगी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि रोजमर्रा के जीवन में तेलुगु एवं अन्य भारतीय भाषाओं के उपयोग में की गई प्रगति की एक संपूर्ण समीक्षा और अंतःनिरीक्षण की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा किसी भी सभ्यता की समृद्धि का प्रतीक होती है। भाषा व्यापक रूप से समाज में खेलों, भाषाओं, उत्सवों और कलाओं के महत्व का भी द्योतक होती है।
श्री नायडु ने कहा कि किसी भाषा की गौरवशाली विरासत और समृद्धि की सुरक्षा एवं संरक्षा इसे केवल आने वाली पीढ़ियों को आगे बढ़ाने के जरिये की जा सकती है।
यह देखते हुए कि दुनिया भर में कई स्वदेशी भाषाएं भूमंडलीकरण के युग में हाशिये पर चले जाने के संकट का सामना कर रही हैं, उन्होंने सावधान किया कि अगर यही रुझान जारी रहा तो वे विलुप्त हो जाएंगी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि फ्रांस, जर्मनी, रूस, जापान एवं चीन जैसे देश प्रभावी रूप विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम रहे हालांकि उन्होंने सभी क्षेत्रों में अपनी मूल भाषाओं का वर्चस्व बनाये रखा।
श्री गिडुगु वेंकट राम मूर्ति को भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उन्होंने उन्हें बहुभाषाविद, इतिहासकार और एक सामाजिक दूरदृष्टा बताया जिन्होंने तेलुगु भाषा को सरल बनाने तथा इसे साधारण लोगों के लिए अधिक समझ योग्य बनाने के लिए कोशिश की। उनके अनथक प्रयासों के कारण ही यह भाषा धीरे-धीरे आम लोगों में घर कर पाई।
इस वर्चुअल समारोह में भाग लेने वालों में तेलंगाना विधान सभा के विधायक डॉ. सी. एच. रमेश, तेलंगाना जागृति की अध्यक्ष श्रीमती कविता कालवकुंतला, एसएटीसी के अध्यक्ष श्री विक्रम पेटलुरू और जर्मनी आधारित वैज्ञानिक श्री गणेश टोटेमपुडी शामिल थे।