नई दिल्ली : राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, राज्यपालों, उपराज्यपालों,प्रशासकों और राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों केशिक्षा मंत्रियोंने एकमत से यह कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) मात्र एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि राष्ट्र की आकांक्षाओं को साकार करने का प्रयास है। इसी वक्तव्य के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर एक दिवसीय वर्चुअल सम्मेलन की आज (7 सितंबर, 2020) शुरुआत हुई।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस नीति को सरकार के कार्य (डोमेन) तक सीमित रखना उचित नहीं होगा। अपने स्वागत भाषण में चर्चा की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा, “विदेश नीति या रक्षा नीति की तरह, शिक्षा नीति भी देश की नीति होती है, और इन पर सरकार के बदलने का बहुत कम प्रभाव पड़ता है।”
इस दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त करते हुएराष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने उन तरीकों की सराहना की, जिसके तहत सभी समुदायों के लाखों सुझावों में से निष्कर्ष निकाल कर नीति को सुसंगत और प्रभावी दस्तावेज के रूप में तैयार किया गया है। उन्होंने देश को “ज्ञान केंद्र” (नॉलेज हब) बनाने के लक्ष्य के लिए नीति का मार्गदर्शन करने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका की सराहना की।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर राज्यपालों के सम्मेलन में राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति को लागू करने की प्रक्रिया में यह सम्मलेन बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि एनईपी का सभी लोग स्वागत कर रहे हैं, क्योंकि लोगों ने इसे अपना माना है। यह स्वीकृति ही किसी भी नीति की सफलता का आधार होती है। व्यापक भागीदारी और योगदान के कारण ही लोगों ने इसे अपना माना है। उन्होंने आगे कहा कि यह नीति न केवल शिक्षा से संबंधित है बल्कि यह 21वीं सदी के नए सामाजिक और आर्थिक बदलावों के लिए भारत को तैयार करती है। यह देश को, आत्मनिर्भर भारत की नीति के अनुरूप स्वाबलंबी होने के लिए तैयार करती है। लेकिनइसे सफल बनाने के लिए, एनईपी के बारे में सभी शंकाओं को दूर किया जाना चाहिए।
एनईपी के सिद्धांतों के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह पाठ्यक्रम तथा प्रयोग प्रदर्शन, पहुंच और मूल्यांकन के बजाय सीखने और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करती है। उन्होंने कहा कि उस नीति से बाहर निकलने का एक असाधारण प्रयास है, जिसके तहत आज तक ‘सभी के लिए एक ही दृष्टिकोण’अपनाया जाता रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्ञान-प्राप्ति के साथ संस्कृति, भाषा और परंपराओं को एकीकृत करना आवश्यक है ताकि बच्चे इसे एकीकृत तरीके से आत्मसात कर सकें और वास्तव में नई नीति इसी पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करती है। वर्तमान परिदृश्य में छात्रों पर सामाजिक दबावहोता है कि वे कुछ गिने-चुने पाठ्यक्रमों(स्ट्रीम) में आगे बढ़ें, जो उनकी पसंद के अनुसार नहीं भी हो सकते हैं।राष्ट्रीय शिक्षा नीति की योजना छात्रों को उनकी योग्यता के अनुसार किसी भी स्ट्रीम को आगे बढ़ने के लिए मंच प्रदान करने की है। उन्हें व्यावसायिक शिक्षा भी दी जायेगी, जो उन्हें रोजगार कौशल हासिल करने में मदद करगी। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत को ज्ञान का केंद्र बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इस क्रम में, सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय संस्थान भी देश में स्थापित किए जाएंगे। सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों की सुविधा के लिए तकनीकी समाधान का उपयोग किया जाना चाहिए। आम लोगों के लिए किफायती और सुलभ सुविधाएं उपलब्ध करना ही एनईपी की प्राथमिकता है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि नियमों को सरल और सुव्यवस्थित किया गया है। वास्तव में, क्रमिक स्वायत्तता भी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होती है। यह संस्थानों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रेरित करेगी। उन्होंने कहा कि 25 सितंबर से पहले जितना संभव हो उतने विश्वविद्यालयों में वर्चुअल सम्मेलन आयोजित किये जाने चाहिए और एनईपी के कार्यान्वयन पर बातचीत शुरू की जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह नीति तभी सफल हो सकती है जब हम अपनी तरफ से अधिक से अधिक लचीलापन दिखाएं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह नीति सरकार विशेष की नहीं बल्कि देश की है। नीति, लोगों की आकांक्षाओं का परिणाम है और इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरी तरह से लागू करने के लिए सभी कदम उठाए जाने चाहिए।
सम्मेलन को संबोधित करते हुएराष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) देश को, विशेषकर युवाओं को इक्कीसवीं सदी की जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप आगे ले जाएगी। उन्होंने दूरदर्शी नेतृत्वऔर इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ को तैयार करने में प्रेरक भूमिका निभाने के लिए प्रधानमंत्री को बधाई दी और डॉ. कस्तूरीरंगन तथा मंत्रियों के साथ-साथ एक विस्तृत प्रक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आकार देने के लिए शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की सराहना की।शिक्षा नीति के लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 12,500 से अधिक स्थानीय निकायों और लगभग 675 जिलों से दो लाख से अधिक सुझाव मिले। उन्होंने कहा कि अगर बदलाव को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो भारत एक शिक्षा महाशक्ति के रूप में उभरेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि एनईपी के कार्यान्वयन में राज्य-विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होने के नाते राज्यपालों की भूमिका महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति ने कहा कि लगभग 400 विश्वविद्यालय हैं, जिनसे लगभग 40,000 कॉलेज संबद्ध हैं।इसलिए इन विश्वविद्यालयों के साथ समन्वय और संवाद स्थापित करना अनिवार्य है। यह कार्य राज्यपालोंद्वारा किया जा सकता है, जो विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि शिक्षा सामाजिक न्याय के लिए सबसे प्रभावी तरीका है और इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति, केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6 प्रतिशत निवेश करने का आह्वान करती है। उन्होंने कहा कि एनईपी एक जीवंत लोकतांत्रिक समाज के लिए सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों को मजबूत करने पर जोर देती है और साथ ही मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों, संवैधानिक मूल्यों और देशभक्ति के लिए छात्रों के मन में सम्मान का भाव पैदा करने का प्रयास करती है।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने राज्यपालों को संबोधित करते हुए कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों (एसईडीजी) को इस नीति में विभिन्न पहलों के माध्यम से प्राथमिकता दी गई है। इसमें 2025 तक प्राथमिक स्कूल स्तर पर सभी बच्चों को मूलभूत साक्षरता और संख्या योग्यता प्रदान करना शामिल है।
एनईपी में शिक्षकों की भूमिका के बारे में राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि नई शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की केंद्रीय भूमिका होगी और सबसे अधिक होनहार लोगों को शिक्षण पेशे के लिए चुना जायेगा। इस दृष्टिकोण के साथ, अगले साल तक शिक्षकों के शिक्षण के लिए एक नया और व्यापक पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा।
व्यावसायिक शिक्षा के महत्व के बारे में राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि भारत में 5 प्रतिशत से कम कार्यबल को औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा मिली है, जो पश्चिमी देशों की तुलना में नाममात्र है। इसलिए, एनईपी में व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा का एक हिस्सा माना जाएगा और ऐसी शिक्षा को समान दर्जा दिया जाएगा जो बच्चों को न केवल अधिक कुशल बनाएगी बल्कि श्रम के लिए सम्मान का भाव भी पैदा करेगी।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है कि मातृभाषा, प्राथमिक शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए। इसलिए नई नीति में तीन भाषाओं के फार्मूले को अपनाया गया है। इसमें भारतीय भाषाओं, कलाओं और संस्कृति को प्रोत्साहित करने की भावना है, जो भाषाई विविधता द्वारा हमारे देश की एकता और अखंडता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से, दुनिया भर में बहु-विषयक शिक्षा की सराहना की जा रही है और इसलिए एनईपी के अनुसार, मल्टी डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिवर्सिटीज यानी ‘एमईआरयू’ की स्थापना की जाएगी, जो योग्य, बहुमुखी और रचनात्मक युवाओं के विकास में योगदान देगी। 2030 तक हरेक जिले या इसके आसपास के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए एक बड़ी बहु-अनुशासनात्मक उच्च शिक्षा संस्थान को इस नीति के तहत लक्षित किया जा रहा है। सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा सुलभ बनाने के लिए ये कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत को वैश्विक अध्ययन गंतव्य बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और यह कल्पना की गई है कि भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों को शिक्षा प्रदान करने की अनुमति दी जाएगी।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि इस शिक्षा नीति की सफलता केंद्र और राज्यों दोनों के प्रभावी योगदान पर निर्भर करेगी। शिक्षा को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल किया गया है औरइसके लिए केंद्र और राज्यों द्वारा समन्वय के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। राज्यपालों के उत्साह की सराहना करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि कुछराज्यपालों ने संबंधित शिक्षा मंत्रियों और कुलपतियों के साथ बातचीत शुरू करके राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन की तैयारी भी शुरू कर दी है।
उन्होंने राज्यपालों को कार्यान्वयन के लिए थीम आधारित वर्चुअल सम्मेलन करने की सलाह दी और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के लिए सुझाव भी आमंत्रित किए जिनका देश भर में उपयोग किया जा सकता है। राष्ट्रपति श्री कोविंद नेनिष्कर्ष के रूप में कहा कि राज्यपालों और शिक्षा मंत्रियों का यह योगदान भारत को ‘ज्ञान केंद्र’ (नॉलेज हब)में बदलने में मददगार होगा।