राजिम मेला में कलाकारों को नया उत्साह एवं उर्जा मिलता है – अल्का चंद्राकर

राजिम। राजिम माघी पुन्नी मेला में मुख्य मंच के कार्यक्रम पश्चात प्रख्यात गायिका अल्का चन्द्राकर जी मीडिया सेंटर पहुॅंची। मीडिया सेंटर में चर्चा के दौरान उन्होने बताया की मेले में भव्यता पहले जैसे ही बनी हुई है, कार्यक्रम देखने लोगों का उत्साह बढ़ रहा है और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी भीड़ बढ़ रही है। कोरोना के कारण उत्साह में कमी जरुर आ रही थी, लेकिन कलाकारों को राजिम माघी पुन्नी मेला में कार्यक्रम के प्रति उत्साहित एवं इंतजार रहता है। राजिम मेले में कार्यक्रम करने में जो सम्मान मिलता है वह और कहीं नही मिलता।

यहाॅं कलाकारों को एक नया उत्साह एवं उर्जा मिलता है। उन्हांेने आगे कहा कि कोरोना के बाद यह मेरा पहला कार्यक्रम है। पिछले वर्ष इसी मंच पर मेरा कार्यक्रम का समापन हुआ था आज फिर वहीं से शुरुआत हो गयी। उन्होने पिछले वर्ष की अपनी बातों को याद करते हुए बताया कि हमारी खुद की म्युजिक स्टूडियों बन गया है जो लाकॅडाउन के कारण रूका था। यह स्टूडियो डीजे, एफएम रेडियों छत्तीसगढ़ी लोक कला के लिए ही बना है। उन्होने एक सवाल के जवाब में कहा कि अच्छी चीजों को ही प्राप्त करें प्रसिद्धि के लिए अप्रिय गीत संगीत से दूरी बनायें। अपनी संस्कृति को अपनाये एवं गौरवान्वित करें। ऐसे गानों को न बनाये और न ही गायें, जो खुद अपने घर में परिवार के साथ नहीं सुना जा सकता हो। महोत्सव जैसे कार्यक्रमों से जागरूकता आती है। कोरोना काॅल मे हमें कुछ परेशानियाॅ ंतो हुए लेकिन साथ ही राहत भी मिली। क्योंकि हमें घर परिवार में बच्चों से मिलकर घर में रहने, बातें करने का मौका मिला। नहीं तो हम लोग कार्यक्रम के व्यस्तता के कारण भूल जाते है कि घर पर बच्चे हमारा इंतजार करते रहते हैं। कोरोना के दौरान हमने कलाकारों को आर्थिक एवं मानसिक रूप से भरपुर मदद की खासकर अपनी टीम के कलाकारों की मदद की। उन्होंने छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर जोर देते हुए कहा कि हमारी कोशिश यही रहती है कि बुद्धि जीवी वर्ग देख सुन सके ऐसे गाने गातें है।

छत्तीसगढ़ी गानों को सुगम बनाने के लिए लोक संस्कृति के तराने जोड़े, क्लासिक का नया रुप लाया तब कही जाकर एक अच्छी गाना बनता है। लोग नाचा, गम्मत तक ही सीमित हो गये थे जिसको हमें ऊपर लाना था। उन्होंने छत्तीगढ़ी बोली, सभ्यता को बचाये रखने के लिए कहा कि लोगों को अगर इन्हे बचाना है तो दूसरे प्रदेश की व्यंजन मोमोस, इडली, डोसा की तरह हमें हमारे छत्तीसगढ़ी व्यंजन चीला, फरा, को ठेला में लाये। जिस दिन यह आ गया तो समझों छत्तीसगढ़ बोली और संस्कृति संवर गया। अतः अपने छत्तीसगढ़ी संस्कृति, बोली भाखा को बढ़ावा देनें में होई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।