रायपुर ,भारतीय पंचांग की काल गणना पद्धति में सूर्य की गति के साथ ही चंद्रमा की गति को भी समायोजित किया गया है सूर्य की गति से जहाँ साल में होने वाले ऋतु परिवर्तन की गणना की जाती है, वहीं हम चंद्रमा की गति से मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन का भी अनुमान लगा सकते हैं।
एक दिन के चौबीस घंटों में होने वाले मौसम परिवर्तन से हम सब परिचित है। समय चक्र की यह सबसे छोटी अवधि है। जिस प्रकार व्यावहारिक रूप से इसे हम प्रातःकाल, मध्याह्न, संध्याकाल एवं रात्रि में विभाजित करते हैं ठीक उसी प्रकार ऋतुएँ प्राकृतिक अवस्थाओं के अनुसार वर्ष के विभाग हैं। भारत में मोटे तौर से तीन ऋतुएँ मानी जाती हैं- शरद, ग्रीष्म, वर्षा जिसमें प्रत्येक ऋतु चार महीने की होती है परंतु प्राचीन काल में यहाँ छह ऋतुएँ मानी जाती थीं-वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर। (प्रत्येक दो महीने की होती है) जिन महीनों में सबसे अधिक पानी बरसता है वे वर्षा ऋतु के महीने हैं; नाम के अनुसार सावन भादों के महीने वर्षा ऋतु के हैं, परंतु यदिवर्ष का मान-वर्ष में दिनों की संख्या-ठीक न हो तो कालांतर में ऋतुओं और महीनों में अंतर पड़ जाएगा और यह अंतर बढ़ता जाएगा। भारत के जो पंचांग प्राचीन ग्रंथों के आधार पर बनते हैं उनमें वर्ष मान ठीक नहीं रहता और इस कारण वर्तमान समय के सावन भादों तथा कालिदास के समय के सावन भादों में लगभग 22 दिन का अंतर पड़ गया है। मोटे हिसाब से नवंबर से फरवरी तक शीत, मार्च से मध्य जून तक गरमी और मध्म जून से अक्टूबर तक बरसात गिनी जा सकती है।
ऋतु परिवर्तन का मूल कारण
ऋतुओं का मूल कारण यह है कि पृथ्वी सूर्य की प्रदक्षिणा करती है। उसके चारों ओर चक्कर लगाती रहती है और साथ ही अपने अक्ष पर घूमती रहती है। यह अक्ष पूर्वोक्त प्रदक्षिण के समतल पर लंब नहीं है; लंब से अक्ष लगभग 231/2 अंश का कोण बनाता है। इसका परिणाम यह होता है कि एक वर्ष में आधे समय तक प्रत्येक द्रष्टा को सूर्य उत्तर की ओर धीरे-धीरे बढ़ता हुआ दिखाई पड़ता है ओर आधे समय तक प्रत्येक द्रष्टा को सूर्य उत्तर की ओर धीरे धीरे बढ़ता दिखाई पड़ता है और आधे समय तक दक्षिण की ओर। वर्ष के ये ही दो आधे उत्तरायण और दक्षिणायण कहलाते हैं।
भारत की छः ऋतुएँ
भारत को भूलोक का गौरव तथा प्रकृति का पुण्य लीलास्थल कहा गया है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां समय-समय पर छः ऋतुएं अपनी छटा बिखेरती हैं। प्रत्येक ऋतु दो मास की होती है।
ऋतुओं का विवरण
ग्रीष्म- ज्येष्ठ से आषाढ़ मई से जून
वर्षा – श्रावण से भाद्रपद जुलाई से सितम्बर
शरद- आश्विन से कार्तिक अक्टूबर से नवम्बर
हेमन्त- मार्गशीर्ष से पौष दिसम्बर से 15 जनवरी (लगभग)
शिशिर – माघ से फाल्गुन 16 जनवरी (लगभग) से फरवरी
वसन्त- चैत्र से वैशाख मार्च से अप्रैल
1. बसंत ऋतु
चैत्र और वैशाख बसंत ऋतु’ का परिचय देती है। इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गयी है। धरती का सौंदर्य इस प्राकृतिक आनंद के स्त्रोत में बढ़ जाता है। रंगों का त्यौहार होली बसंत ऋतु की शोभा को द्विगुणित कर देता है। हमारा जीवन चारों ओर के मोहक वातावरण को देखकर मुस्करा उठता है।
2. ग्रीष्म ऋतु
ज्येष्ठ और आषाढ़ ‘ग्रीष्म ऋतु’ के मास है। इसमें सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणी मात्र के लिये कष्टकारी अवश्य है पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि गर्मी न पड़े तो हमें पका हुआ अन्न भी प्राप्त न हो।
3. वर्षा ऋतु
श्रावण और भाद्रपद ‘वर्षा ऋतु’ के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है। मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। तीज और रक्षाबंधन जैसे त्यौहार भी इस ऋतु में आते हैं।
4. शरद ऋतु
आश्विन और कार्तिक के मास ‘शरद ऋतु’ के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृष्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रुप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखा़ई पड़ता है। दशहरा और दीपावली के त्यौहार इसी ऋतु में आते हैं।
5. हेमन्त ऋतु
मार्गशीर्ष और पौष ‘हेमन्त ऋतु’ के मास हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
6. शिशिर ऋतु
माघ और फाल्गुन ‘शिशिर’ अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरम्भ मकर संक्रांति से होता है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कोहरा छाया रहता है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रुपी फलक के भिन्न- भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं।
तदनुसार जो निष्कर्ष निकाले गए, वे इस प्रकार हैं-
1. शुक्ल पक्ष तापमान में वृद्धि का परिचायक है, और कृष्णपक्ष तापमान में कमी का। अतः अमावस्या के आसपास जैसे कृष्णपक्ष की त्रयोदशी (शिवरात्रि) से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मौसम तुलनात्मक रूप से ठंडा होता है। इसके विपरीत, पूर्णिमा के नजदीक दिनों, जैसे शुक्ल पक्ष एकादशी से कृष्णपक्ष की चतुर्थी तक मौसम तुलनात्मक रूप से गर्म होता है।
2. चंद्रमा की गति से मौसम का पूर्वानुमान करते समय सूर्य की गति पर भी ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में कृष्ण पक्ष में तापमान में वृद्धि होती है, परंतु तापमान वे वृद्धि की दर शुक्ल पक्ष में तीव्र होगी। अतः गर्मी में लू चलने की अधिकतम संभावना वैशाख पूर्णिमा के दिनों में होगी।
3. इसी प्रकार शीत ऋतु में शुक्ल पक्ष में भी तापमान में कमी हो सकती है, परंतु तापमान में कमी की दर कृष्ण पक्ष में तीव्र होगी। अतः ठंड के मौसम में शीत लहर चलने की अधिकतम संभावना पौष माह की अमावस के दिनों में होगी।
4. गर्मी के मौसम में तापमान में असीमित वृद्धि का नियंत्रण जल और वायु की गतिशीलता से होता है। अतः ज्येष्ठ माह के अमावस वाले सप्ताह में मानसून पूर्व की ठंडी हवाओं का प्रवाह आरंभ हो जाता है। पूर्णिमा वाले सप्ताह में आँधी के साथ मानसून पूर्व की बारिश होने की संभावना बनती है।
5. इसी प्रकार ठंड के मौसम में तापमान में असीमित गिरावट का नियंत्रण भी जल और वायु की गतिशीलता से होता है, अतः पौष माह के अमावस्या एवं पूर्णिमा वाले सप्ताह में शीतलहर की अधिकतम संभावना होती है। माघ मास के अमावस्या वाले सप्ताह में ठिठुराने वाली ठंडी हवा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है।
6. वर्षा ऋतु में पूर्णिमा वाले सप्ताह में तेज बारिश की संभावना दोपहर बाद एवं संध्याकाल में होती है। अमावस्या वाले सप्ताह में वर्षा रात्रि एवं प्रातःकाल में होती है।
7. वर्षा ऋतु में दोनों पक्ष की अष्टमी वाले सप्ताह सामान्य होते हैं।
8. इसी प्रकार साल के बारह महीनों में भी अष्टमी वाले सप्ताह सामान्य होते हैं। पूर्णिमा एवं अमावस्या वाले सप्ताह असामान्य होते हैं।
9. साल के चार मास, कार्तिक, मार्गशीर्ष, फाल्गुन और चैत्र समान्य, समशीतोष्ण होते हैं। अतः इन महीनों में पूर्णिमा एवं अमावस्या वाले सप्ताह भी सामान्य होते हैं।
निष्कर्ष-
हम एक दिन के चौबीस घंटों में होने वाले मौसमी परिवर्तन से ज्ञात हैं। अतः उसी तर्ज पर तुलनात्मक रूप से कह सकते हैं कि पूर्णिमा महीने का मध्याह्न काल है और अमावस्या रात्रिकाल। शुक्ल पक्ष की अष्टमी प्रातःकाल है और कृष्ण पक्ष की अष्टमी माह का संध्याकाल। तद्नुसार हम मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन का अनुमान लगा सकते हैं।
महत्व
उपरोक्त निष्कर्ष एवं विश्लेषण का उपयोग हम हमारे दैनंदिन कार्य, जैसे कृषि-खेती, यात्रा, पारिवारिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों आदि की योजना बनाने एवं तिथि निश्चित करने में कर सकते हैं।
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भविष्यवक्ता
(पं.) डॉ. विश्वरँजन मिश्र, रायपुर
एम.ए.(ज्योतिष), रमलाचार्य, बी.एड., पी.एच.डी.
मोबाईल :- 9806143000,
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