राज्य भर में करीब 10 हजार दुर्गा पूजा कार्यक्रमों का आयोजन होता है, इनके अलावा देश और दुनियाभर में एक हजार दुर्गा पूजा पंडाल लगते होंगे। हाल के वर्षों में, खासकर कोलकाता में दुर्गा पूजा ने एक ऐसी सामूहिक गतिविधि का रूप ले लिया है कि वह अपने आसपास जुड़े समुदाय की अर्थव्यवस्था को सहारा देने का जरिया बन गई है। पंडालों को लगाने से लेकर सजावट करने वालों, मूर्ति बनाने वालों से लेकर कारीगरों, इलेक्ट्रिशन से लेकर सुरक्षाकर्मियों तक, पुजारियों से लेकर ढाकियों (ढोल वादकों) तक, पूजा हजारों लोगों को या तो रोजगार देती है या फिर उनकी कमाई में बढ़ोतरी करती है।
कोलकाता में ही करीब 4,500 करोड़ का टर्नओवरकोलकाता में आयोजित 100 विशाल दुर्गा पूजा पंडालों के निकाय ” के अध्यक्ष काजल सरकार का कहना है, ‘इस पांच दिवसीय त्योहार के दौरान कोलकाता में करीब 4,500 करोड़ रुपयों और पूरे पश्चिम बंगाल में 15, 000 करोड़ रुपयों का वित्तीय लेनदेन होता है। इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स के डायरेक्टर जनरल राजीव सिंह का मानना है कि आने वाले कुछ वर्षों में कोलकाता में दुर्गा पूजा का टर्नओवर तिगुना यानि लगभग 15,000 करोड़ रुपये हो जाएगा।
कॉर्पोरेट दुनिया की बढ़ती भागीदारी दुर्गा पूजा में निहित इन वित्तीय संभावनाओं को पहचानने में देश के कॉपोरेट जगत को देर नहीं लगी। ‘एनकॉन’ के रवि पोद्दार और ‘ब्रैंड एंड ब्यूटीफुल’ के अविषेक भट्टाचार्य का कहना है, ‘कॉर्पोरेट अपनी ब्रैंडिंग और विज्ञापन के लिए दुर्गा पूजा पर 500 से 800 करोड़ खर्च कर रहे हैं। इसमें बैनर और गेट की सजावट पर ही लगभग 150 करोड़ रुपये खर्च हो जाते हैं।’
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अब स्थानीय लोगों के चंदे पर निर्भरता नहींपूजा के आयोजक अब स्थानीय लोगों के चंदे पर निर्भर नहीं रह गए हैं। अगर पारंपरिक और साधारण सी दुर्गा पूजा का खर्च 15 लाख है तो बड़े आयोजनों पर एक करोड़ तक खर्च हो रहा है। यह इनकी लोकेशन, साइज और थीम पर निर्भर करता है। आजकल और आउटडोर एडवर्टाइजिंग से की 90 प्रतिशत खर्च निकल आता है।
Source: National Feed By RSS