इन 5 कथाओं में सिमटा है दिवाली का इतिहास, जानें दीपावली, धनतेरस, छोटी दिवाली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज की कथा

उमरिया(तपस गुप्ता) – अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व दीपावली 27 अक्टूबर रविवार को मनाई जाएगी। दीपावली का पर्व पांच दिनों का होता है, इसका प्रारंभ धनतेरस से होता है और समापन भैया दूज से होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है। दीपावली का प्रारंभ कब से हुआ, इसके संदर्भ में ​कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन कथाओं के साथ जुड़ी घटनाएं दीपावली के महत्व को बढ़ाती हैं। आइए जानते हैं कि दीपावली का त्योहार क्यों मनाया जाता है।

श्रीराम के अयोध्या आगमन पर दीपोत्सव

रामायण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम जब लंका के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी। भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दीपावली मनाई गई थी, हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे। तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर विजय का पर्व बन गया और हर वर्ष मनाया जाने लगा।

सतयुग में मनी थी पहली दीपावली

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में पहली दीपावली मनाई गई थी। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि अर्थात् धनतेरस को समुद्र मंथन से देवताओं के वैद्य धनवन्तरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। धनवन्तरि के जन्मदिवस के कारण धनतेरस मनाया जाने लगा, यह दीपावली का पहला दिन होता है। वे मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक थे। उनके बाद धन की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, जिनका स्वागत दीपोत्सव से किया गया था।

श्रीकृष्ण ने किया नरका सुर का संहार

भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से प्रागज्योतिषपुर नगर के असुर राजा नरका सुर का वध किया था। नरका सुर को ​स्त्री के हाथों वध होने का श्राप मिला था। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। नरका सुर के आतंक और अत्याचार से मुक्ति मिलने की खुशी में लोगों ने दीपोत्सव मनाया था, इसलिए हर वर्ष चतुर्दशी तिथि को छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी। इसके अगले दिन दीपावली मनाई गई।

गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा

मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाए रखा। इससे इंद्र क्रोधित हो उठे, बारिश और तेज कर दी। उस गोवर्धन के नीचे सभी ब्रजवासी सुरक्षित थे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन पर्वत को नीचे रखा और गोवर्धन पूजा के साथ अन्नकूट मनाने को कहा। तब से दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नूकट मनाया जाने लगा।

भैया दूज

दिवाली के पांचवे दिन का पर्व है- भैया दूज। यमराज ने अपनी बहन को वरदान दिया था कि वे हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया ​तिथि को उनसे मिलने आएंगे, इसलिए हर वर्ष दीपावली के एक दिन बाद भैया दूज का पर्व मनाया जाता है।

धनतेरस को काली पूजा यानी काली चौदस

जब मां काली राक्षसों का वध कर रही थीं, उस दौरान बेहद गुस्से में थीं, उनका क्रोध कम नहीं हो रहा था। तब भगवान शिव उनके सामने लेट गए। जब उनके पैरों से भगवान शिव के शरीर का स्पर्श हुआ तो अचानक रुक गईं और उनका क्रोध शांत हो गया। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी, इस​लिए हर वर्ष धनतेरस को काली चौदस मनाया जाता है। इसके अगले दिन अमावस्या को उनके शांत स्वरूप लक्ष्मी की पूजा होने लगी