ग्रामोद्योग का अभिनव प्रयोग: अब रंगीन शहतूत से रेशम उत्पादन मंत्री गुरु रूद्रकुमार ने कोसा वस्त्रों पर प्राकृतिक वनस्पतिक रंगों के प्रयोग पर दिया था जोर

रायपुर, ग्रामोद्योग विभाग के रेशम प्रभाग द्वारा रंगीन शहतूती रेशम कोया एवं रंगीन रेशम धागे का उत्पादन करके अभिनव प्रयोग कर विशिष्ट उपलब्धि अर्जित की है। उल्लेखनीय है कि राज्य के कोसा वस्त्रों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार ख्याति प्राप्त हो रही है। ग्रामोद्योग मंत्री गुरु रूद्रकुमार ने पूर्व में ली विभागीय समीक्षा बैठक में कोसा वस्त्रों पर प्राकृतिक वनस्पतिक रंगों का प्रयोग के लिए जोर दिया था।

विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इसी कड़ी में बिलासपुर के अनुसंधान विकास एवं प्रशिक्षण कार्यालय द्वारा रंगीन शहतूती रेशम कोया एवं रंगीन रेशम धागे का उत्पादन कर रहे हैं। वस्तुतः सहतूती रेशम का धागा रेशम के कृमियों के कृमिपालन कार्य के उपरांत प्राप्त होने वाला उत्पाद है, जो कि आकर्षक रेशमी साड़ियों प्रसिद्ध परिधानों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। सामान्यतः यह अपने प्राकृतिक रंग हल्के पीले एवं सफेद रंग का होता है। जिन्हें अधिक आकर्षक एवं मनमोहक बनाने हेतु रेशम के प्राकृतिक रंगों के धागों को रंगाई कर विभिन्न रंगों के रेशमी धागे बनाए जाते हैं। जिनसे आकर्षक साड़ियां एवं परिधान तैयार किया जाता है। रेशम के प्राकृतिक रंग के धागों का रंगाई कार्य न केवल अधिक समय लेने वाली खर्चीली प्रक्रिया है, अपितु इस कार्य में पर्यावरण भी दूषित होता है। उक्त व्याधियों से निजात पाने हेतु विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों में वैज्ञानिकों द्वारा रेशम कृमि से सीधे वांछनीय रंगों के धागे प्राप्त किए जा सके। इसके लिए सतत् प्रयास किया जा रहा है। देश के विभिन्न रेशम संस्थानों द्वारा अभी तक रंगीन कोया एवं धागों के उत्पादन में आंशिक सफलता प्राप्त की जा चुकी है। छत्तीसगढ़ राज्य में प्रथम बार रेशम अनुसंधान द्वारा किए गए प्रयोगों के आधार पर अनुसंधान विकास एवं प्रशिक्षण कार्यालय बिलासपुर के द्वारा भी रंगीन कोया एवं धागे का उत्पादन करने में सफलता प्राप्त की है।
भविष्य में विभिन्न प्रकार के रंगीन शहतूती कोया का व्यवसायिक उत्पादन किए जाने की दिशा में प्रयास प्रारंभ किया जा चुका है। जिससे प्राकृतिक वनस्पतिक डाई (रंगों) का प्रयोग रेशम कीट पर किया जाएगा। जिससे उत्पादित रंगीन कोया का उत्पादन कर रिलिंग प्रक्रिया के माध्यम से रंगीन धागों का उत्पादन प्राकृतिक रंगों के साथ किया जा सकेगा, जो कि न केवल कम खर्चीला होगा, अपितु कोया धागा रंगाई में नियोजित श्रमिक-हितग्राही के लिए किसी भी प्रकार से स्वास्थ्यगत दृष्टिकोण से हानिरहित होगा। इस अभिनव प्रयोग एवं विशिष्ट सफलता के लिए रेशम अनुसंधान विकास एवं प्रशिक्षण कार्यालय बिलासपुर का सराहनीय प्रयास रहा है।