हिंदी भाषा को भारत की उच्च न्याय व्यवस्था एवं उच्च शिक्षा प्रणाली में लागू किया जाना चाहिए:शैलेन्द्र

शहडोल-( उबैद खान की रिपोर्ट) विदेशी भाषा को अपनी पटरानी बनाकर रखना घातक आज देश में हिंदी माध्यम स्कूलों की स्थिति अच्छी नहीं। देश के निजी क्षेत्र में स्कूलों की सबसे बड़ी श्रंखला सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की हालत चिंताजनक। भाजपा नेता शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने हिंदी दिवस पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम ज्ञापन सौंप कर हिंदी भाषा को भारत की उच्च न्याय व्यवस्था एवं उच्च शिक्षा प्रणाली में लागू कर हिंदी भाषा को सशक्त करने के ठोस एवं अभूतपूर्व कदम उठाए जाने की मांग की है। श्री श्रीवास्तव ने प्रधानमंत्री के नाम लिखे अपने पत्र में कहा है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। किंतु फिर यहां के किसान के लिए टीवी और रेडियो पर जो वार्ताएं प्रसारित की जाती हैं वे अक्सर या तो अंग्रेजी में होती हैं या अंग्रेजी प्रधान शब्दों से भरी हुई होती हैं। इन वार्ताओं को भारत का किसान समझ नही पाता इसलिए सुनना भी नही चाहता। यही कारण है कि टीवी और रेडियो पर आयोजित की जाने वाली इन वार्ताओं का अपेक्षित परिणाम देश में देखने को नही मिल रहा है। यहां तक कि भारत की न्यायिक व्यवस्था में भी उच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में अंग्रेजी का ही चलन है। एक आम आदमी जिसे अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान ना हो उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के फैसलों को पढ़कर ठीक से समझने में भी सक्षम नहीं होता है। देश की उच्य शिक्षा प्रणाली में भी अंग्रेजी का वर्चस्व होने के कारण एक आम आदमी अपने बच्चों को ना चाहते हुए भी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाने के लिए विवश है जिसके कारण आज देश में हिंदी आधारित स्कूलों की स्थिति अच्छी नहीं है। देश के निजी स्कूलों की सबसे बड़ी श्रंखला सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की हालत लगातार खराब होती जा रही है। राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोये रखने के लिए नही भाषा नीति की आवश्यकता है। इसके लिए शिक्षा का संस्कारों पर आधारित होना नितांत आवश्यक है। संस्कारित और शिक्षित नागरिक तैयार करना जिस दिन हमारी शिक्षा नीति का उद्देश्य हो जाएगा उसी दिन इस देश से कितनी ही समस्याओं का समाधान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी तक के जो आंकड़े हैं वे यही बता रहे हैं कि हमने मात्र शिक्षित नागरिक ही उत्पन्न किये हैं, संस्कारित नही। संस्कारित और देशभक्त नागरिकों का निर्माण देश की भाषा से ही हो सकता है। हमारे देश की अन्य प्रांतीय भाषाएं हिंदी की तरह ही संस्कृत से उद्भूत हैं। इसलिए हम उन भाषाओं की उपेक्षा की बात नही करते, परंतु इतना अवश्य कहते हैं कि इन भाषाओं के नाम पर देश की राष्ट्रभाषा की उपेक्षा करना राष्ट्र के मूल्यों से खिलवाड़ करना है। जबकि विदेशी भाषा को अपनी पटरानी बनाकर रखना तो और भी घातक है। ज्ञापन सौंपते समय अमृत वर्मा, अजय कुशवाहा, सूरज कहार, रवि कुशवाहा, चंदन वर्मा, प्रमोद कहार, आकाश सिंह विशेष रूप से उपस्थित रहे।