(शासकीय सामग्री की चोरी की एफआईआर दर्ज करा कराये चोरों पर कठोर कार्यवाही, सुरक्षा निधि निकाले जाने की बात पूरी तरह से बेबुनियाद )
(शहर में सुविधा दिलाने को लेकर, एक ही पार्टी के महापौर और पूर्व महापौर आमने – सामने)
चिरमिरी – विद्युत शवदाह मशीन होते हुए भी कोरोना से मृत हुए शवों को खुले में दाह संस्कार करने के विरोध के बाद मचे बवाल व आरोप प्रत्यारोप के बीच पूर्व और वर्तमान महापौर आमने – सामने हो गए हैं। दोनों ओर से आ रहे बयानों के बाद अब पूर्व महापौर के. डोमरु रेड्डी ने वर्तमान महापौर श्रीमती कंचन जायसवाल को चुनौती देने के अंदाज में कहा है कि यदि महापौर जी को लगता है कि विद्युत शवदाह की स्थापना में किसी तरह का भ्रष्टाचार हुआ है तो वे इसकी जांच कराकर दोषियों को जरूर सजा दिलाएं, जिसका स्वागत है। लेकिन मानवीय संवेदना का परिचय देते हुए वर्तमान में कोरोना से मृत हो रहे शवों के खुले में होने वाले दाह – संस्कार से क्षेत्र के लोगों को हो रही परेशानी को देखते हुए पहले विद्युत शवदाह मशीन को अविलम्ब चालू कराएँ। महापौर श्रीमती जायसवाल द्वारा कलेक्टर कोरिया को पत्र लिखकर अमानत राशि एवं सुरक्षा निधि को निकाल देने वाले अधिकारी पर कार्यवाही की माँग किये जाने के सम्बंध में पूर्व महापौर ने उन्हें आश्वस्त करते हुए बताया कि कार्यालयीन अभिलेख जाँच कर देख लें सुरक्षा निधि की राशि आज भी नगर निगम में सुरक्षित है। एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि को यूँ गैर-जिम्मेदाराना पत्र व्यवहार और बयान देना शोभा नहीं देता। शालीनता और शान्त, कर्तव्यनिष्ठ व्यवहार ही जनता के सुख – दुःख का साथी होता है, इसमें कपट, द्वेष और बदले की भावना किसी भी दृष्टिकोण से अच्छा नहीं है, न तो स्वयं के लिए और न ही समाज के लिए। फिर हम तो सार्वजनिक जीवन जीने वाले राजनैतिक लोग हैं, हमें तो और अधिक जिम्मेदारी के साथ संयमित जीवन जीना होता है, जो समाज के लिए दिशा दिखाने वाला होता है।
रेड्डी ने आगे कहा कि यह बिल्कुल साफ और स्पष्ट है कि चिरमिरी में लकड़ी की समस्या को देखते हुए उन्होंने वर्ष 2018 में अपने महापौर कार्यकाल में तत्कालीन कोरिया कलेक्टर एस. प्रकाश द्वारा डीएमएफ मद से राशि स्वीकृत कराकर डोमनहिल मुक्तिधाम में इस विद्युत शवदाह मशीन की स्थापना कराई थी, जिसकी विधिवत लोकार्पण व टेस्टिंग होने के आज डेढ़ साल बाद भी इसे चालू नही कराया जा सका, जो प्रशासनिक दक्षता की कमी को दर्शाता है, यह क्षेत्र के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। पूर्व महापौर और जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष श्री रेड्डी ने आगे कहा पूरे छतीसगढ़ में अब तक केवल दो विद्युत शवदाह गृह रायपुर व चिरमिरी में है, जो क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है। लेकिन श्रेय की राजनीति में फसें सिपाह - सलाहकारों के पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता के कारण आज लोकार्पण के डेढ़ साल बाद भी इसका चालू न हो पाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। लकड़ियों के उपलब्धता के दावे को खोखला बताते हुए उन्होंने कहा कि आज भी लोग वन विभाग के बड़ा बाजार, खड़गवां या मनेद्रगढ़ डिपो से लकड़ी लाने को मजबूर हैं। चाहे तो वन विभाग से जानकारी लेकर, पता लगा ले, जमीनी हकीकत स्पष्ट हो जाएगा।
रेड्डी ने आगे कहा कि आश्चर्य है कि मशीन चालू कराने के जनता के दवाब बढ़ने के बाद डेढ़ साल बाद इसमें भ्रष्टाचार होने की आशंका महापौर जी को हो रही है। क्या निगम प्रशासन अपने इस कार्यकाल के इन डेढ़ वर्षों तक सो रहा था? इन डेढ़ सालों में यदि उन्होंने इसे चालू कराने या इसके काल्पनिक भ्रष्टाचार की जांच के लिए कोई प्रयास या पत्राचार किया हो तो वे आम जनता को बताए। अपने कड़े मेहनत व दृढ़ - इच्छाशक्ति से चिरमिरी क्षेत्र में स्थापित इस विद्युत शवदाह गृह से कुछ पार्ट्स चोरी हो जाने की जानकारी पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यदि ऐसा है तो यह बेहद दुर्भाग्यजनक है कि प्रदेश व निगम में हमारी पार्टी की सरकार व हमारी पार्टी के विधायक के रहते ऐसा कैसे हो गया? क्या क्षेत्र के असमाजिक तत्वों पर सरकार का कोई नियंत्रण नही है? तत्काल एफआईआर दर्ज कर पुलिस को चोरों को खोज निकलना चाहिए, जन सरोकार वाले ऐसे वस्तुओं वह भी शासकीय सामग्री की चोरी, ये तो प्रशासन के लिए खुली चुनौती है और ऐसे आपदा के समय में ऐसी घटना को अंजाम देने वालों के ऊपर कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए। निगम को मूलभूत सुविधाओं की माँग करने वाले जनता को जवाब देने के बजाय पुलिस से समुचित कार्यवाही कराने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि सवाल तो सत्ता से ही होगा, पूर्व शासनकाल या विपक्ष से नहीं।
पूर्व महापौर के. डोमरु रेड्डी ने निगम प्रबंधन द्वारा मशीन चालू करने के प्रयास करने के बजाय राजनैतिक बयानबाजी किए जाने के संदर्भ में कहा कि उन्होंने तो कोरोना से मृत हुए लोगो के शव को खुले मुक्तिधामों में जलाने से लोगो को हो रहे परेशानियों को देखते हुए बन्द पड़े विद्युत शवदाह गृह को चालू कराने की एक सीधा, स्पष्ट और जन सरोकार वाली मांग की थी। उन्हें नही पता था कि यह राजनीति का एक मुद्दा बना दिया जाएगा। जिसमे कि राजनीति करने लायक कुछ है नहीं। पता नहीं मैने ऐसी कौन सी आफत वाली मांग कर दी कि लोगों को इतना बुरा लग गया। लेकिन फिर भी पद रहे या न रहे उनके लिए क्षेत्रवासियों का हित ही आज भी सर्वप्रथम और सर्वोपरि है और जब भी जरूरत पड़ेगी वे इस तरह की मांग जनहित में आगे भी उठाते रहेंगे।