माँ की प्रसन्नता के लिए भक्तों ने किया आकर्षक धुनुची नृत्यरचनात्मक प्रतियोगिताओं का भी आयोजन’बंगाली दुर्गा पूजा की सदियों प्राचीन परंपरा राजेन्द्र नगर में 43 वर्षों से जारी

रायपुर। श्री श्री शारदीय दुर्गाेत्सव त्रिलोकी मां कालीबाड़ी समिति राजेंद्र नगर के मंदिर परिसर में महानवमी के अवसर पर श्रद्धालुओं ने भव्य धुनुची नृत्य किया। धुनुची नृत्य बंगाली दुर्गा पूजा की परंपरा का अहम हिस्सा है। धुनुची नृत्य में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी हिस्सा लिया। दुर्गा पूजा के अवसर पर विभिन्न रचनात्मक प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया जिसमें बच्चों ने उत्साह के साथ हिस्सा लिया। विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया।
श्री श्री शारदीय दुर्गाेत्सव त्रिलोकी मां कालीबाड़ी समिति राजेंद्र नगर के सचिव श्री विवेक बर्धन ने बताया कि नवरात्र के अवसर पर धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा पंडालों में महानवमी में किया जाने वाला नृत्य है। दुर्गा पूजा के दौरान इस नृत्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है। श्री बर्धन ने बताया कि धुनुची नृत्य का सम्बंध महिषासुर वध से है। पुराणों के अनुसार महिषासुर के अंत के लिए देवताओं ने माँ दुर्गा की पूजा-उपासना की थी और माँ ने महिषासुर के वध से पूर्व अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए यह धुनुची नृत्य किया था। कहीं-कहीं महानवमी के पूर्व महासप्तमी से भी यह नृत्य किया जाता है। समिति के राजेन्द्र नगर स्थित मंदिर परिसर के दुर्गा पूजा पंडाल में बीते 42 वर्षों से धुनुची नृत्य का आयोजन कर इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। यह 43वां वर्ष है। भक्तों ने माँ को प्रसन्न करने और मनोवांछित कार्य की सिद्धि के लिए आकर्षक धुनुची नृत्य किया।
इसके साथ ही प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी बच्चों की प्रतिभाओं को मंच देने के उद्देश्य से विभिन्न रचनात्मक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इनमें शंखनाद, सामान्य ज्ञान, कुर्सी दौड़, नृत्य व संगीत प्रतियोगिता में बच्चों के साथ बड़ों ने भी अपनी प्रतिभा दिखाई। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान के विजाताओं के साथ ही सभी प्रतिभागियों को भी पुरस्कृत किया गया।
 ’सिन्दूर खेला 24 को’
श्री श्री शारदीय दुर्गाेत्सव त्रिलोकी मां कालीबाड़ी समिति राजेंद्र नगर स्थित मंदिर परिसर में विजयदशमी के दिन 24 अक्टूबर को सिंदुर उत्सव का आयोजन किया गया है। सचिव श्री विवेक बर्धन ने बताया कि इसे सिंदुर खेला (देवी सिंदुर वरन) के नाम से जाना जाता है। सिंदूर खेला का आयोजन शाम पांच बजे से  किया जाएगा। श्री बर्धन ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार मां दुर्गा जब मायके से विदा होकर ससुराल जाती है तो उनकी मांग सिंदुर से सजाई जाती है। इसके बाद सुहागिन स्त्रियां एक-दूसरे को सिंदुर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं। मान्यता है कि सुहागिनों को सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है।