रायपुर/ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता मो. असलम ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 12 साल पहले कम क़ीमत का हवाला देकर बायो डीजल बनाने के लिए अमरीकी मूल के जेट्रोफा यानी रतनजोत पौधे को अपना हथियार बनाया और राज्य भर में रतनजोत लगाने की शुरुआत की थी। रतनजोत से बायोडीजल निकालने का मुद्दा वर्ष 2005 में सुर्खियों पर था अब यह फिर से राष्ट्रीय स्तर पर उभरकर सामने आया है जिसमें छत्तीसगढ़ की बायोफ्यूल डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीबीडीए) की भागेदारी का गुणगान किया जा रहा है। यह मामला इसलिए सुर्खियों में आया क्योंकि गत दिनों स्पाइसजेट ने अपने 78 सीटर क्यू400 टर्बो प्रॉप विमान के जरिये देहरादून से दिल्ली के बीच बायोफ्यूल से विमान उड़ान भर कर भारतीयों को इस उपलब्धि का दीदार कराया। हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार की यह महात्वाकांक्षी योजना पूरी तरह से विफल है। छत्तीसगढ़ में हजारों हेक्टेयर में रतनजोत लगाकर करोड़ों का भ्रष्टाचार किया गया और नारा दिया कि ’डीजल नहीं अब खाड़ी में, डीजल मिलेगा बाड़ी में।्य तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से 100 एकड़ जमीन में रायपुर से लगे सुंदरकेरा में रतनजोत का पौधा लगवा कर इसे खूब प्रचारित किया गया। हालत यह है कि न वहां पौधा बचा है और न ही शिलालेख ही सुरक्षित बच पाया है। छत्तीसगढ़ में रतनजोत का वृक्षारोपण राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी और इसके नाम पर एक दशक पहले करोड़ों का भ्रष्टाचार किया गया था। अब कुछ स्थानों पर ही इसका पौधा शेष खड़ा हुआ जो रतनजोत के नाम पर अपनी गाथा सुना रहा है। बच्चे एवं ग्रामीण इसके बीज को खाकर बीमार पड़ रहे हैं और जंगल से यह पूरी तरह नष्ट हो चुका है। केवल स्कूलों, नालों, नहरों के आसपास प्राकृतिक रूप से बिना संरक्षण के रतनजोत का पौधा बचा हुआ है। प्रारंभ में मुख्यमंत्री का वाहन बायोडीजल से चलाये जाने का खूब दावा किया गया था पर अब इसका नाम लेने से ही परहेज किया जा रहा है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता मो. असलम ने कहा है कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि 2015 तक छत्तीसगढ़ पूरे देश को अपनी रतनजोत योजना से बायोडीजल के मामले में आत्मनिर्भर कर देगा। सरकार में बैठे चुनिंदा चापलूस अफसरों ने भी तरह-तरह से बखान कर इस योजना के सफल होने का दावा किया था और आवांछित घोषित रतनजोत के पौधे को लगाये जाने के विरोध के बावजूद अनदेखी की थी। छत्तीसगढ़ में इस योजना के अंतर्गत करोड़ों रुपए फूंक दिया गया लेकिन अभी तक नतीजा शून्य ही दिखाई पड़ रहा है। वर्ष 2005 से 2009 के बीच बायोडीजल के उत्पादन का जबर्दस्त फार्मूला गढ़ा गया था इसके लिए राज्य शासन ने अपने चहेतों को हजारों एकड़ भूमि आवंटित की थी पर इसमें हुए करोड़ों रुपए के व्यय का क्या हुआ, इसे बताने के लिए कोई तैयार नहीं है। इस योजना को मुख्यमंत्री ने अतिउत्साह में लागू करवाया था, लेकिन एक दशक से करोड़ों रुपए डकार कर इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन मुख्यमंत्री ने आज तक इस योजना की विफलता पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।