दिल्ली के रहने वाले मंजेश तिवारी के माता-पिता कृत्रिम (आर्टिफिशल) जूलरी का काम करते हैं। साल 2014 में, जब मंजेश की उम्र मात्र 7 साल थी, तब उन्होंने पहली बार किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। गुरुग्राम में उन्होंने ‘ब्लेड्स फॉर ग्लोरी’ नाम की इस प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता। इसके बाद काफी इवेंट्स में मंजेश ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
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भाई को मानते हैं आइडलमंजेश हालांकि छोटी उम्र और संघर्षों में पले-बढ़े होने के कारण ठीक से बात नहीं कर पाते हैं लेकिन देश के लिए पदक जीतना चाहते हैं। मंजेश ने कहा, ‘बड़े भाई राजकुमार ही मेरे आइडल हैं। मैं उनकी तरह देश का नाम रोशन करना चाहता हूं।’ मंजेश के बड़े भाई राजकुमार तिवारी नेसाउथ कोरिया में 2013 में हुए स्पेशल ओलिंपिक वर्ल्ड विंटर गेम्स में गोल्ड मेडल जीता और इतिहास रचा। वह ऐसा करने वाले भारत के एकमात्र फिगर आइस स्केटर हैं।
केवल 150 रुपये लेकर आए थे दिल्लीमूलरूप से गोरखपुर के रहने वाले मंजेश के माता-पिता केवल 150 रुपये लेकर दिल्ली आए थे। मंजेश की मां लीलावती ने बताया कि जब दिल्ली आए थे तो केवल 150 रुपये उनके पास थे। उन्होंने कहा, ‘आज जब अपने बच्चों को टीवी पर देखती हूं, अखबारों में उनका नाम पढ़ती हूं तो काफी अच्छा लगता है।’
भाई राजकुमार ने बर्तन तक किए साफमंजेश के भाई राजकुमार तिवारी का सफर भी काफी मुश्किल भरा रहा। उन्होंने एक समय अखबार बेचे, अपने माता-पिता की मदद के लिए उनके काम में साथ दिया और जब वह अमेरिका में फिगर स्केटिंग में अपने सर्टिफिकेशन कोर्स के लिए गए तो पैसे जुटाने के लिए दिन में 10-12 घंटे तक काम भी किया, बर्तन तक साफ किए।
जीते हैं बहुत मेडलसाल 2015 में शिमला में 11वीं नैशनल आइस स्केटिंग चैंपियनशिप में मंजेश ने ब्रॉन्ज हासिल किया। फिर साल 2016 में उन्होंने गुरुग्राम में इंद्रप्रस्थ आइस स्केटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। इसी साल उन्होंने ऑल इंडिया ओपन चैंपियनशिप की फिगर स्केटिंग स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता। पिछले साल दिल्ली में भी उन्होंने ऑल इंडिया ओपन चैलेंज फिगर स्केटिंग-सोलो में दूसरा स्थान हासिल किया।
ट्रेनिंग भी काफी खर्चीलीमंजेश फिलहाल ऑस्ट्रेलिया में ट्रेनिंग ले रहे हैं, जिसमें उनका साथ कोच रिचर्ड लेडलॉ दे रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में अपने पिछले इवेंट में मंजेश ने काफी कुछ सीखा। हालांकि वह कुछ निराश रहे क्योंकि 8 अंकों से वह गोल्ड मेडल से चूक गए। उन्हें इस इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल मिला। ऑस्ट्रेलिया के कोच रिचर्ड लेडलॉ ने मंजेश की प्रतिभा को देखते हुए नवंबर-2019 से अगले साल जनवरी तक उन्हें ट्रेनिंग देने का फैसला किया। लेडलॉ की ओर से स्कॉलरशिप/ट्रेनिंग लेटर भी दे दिया गया है लेकिन इसका खर्च करीब 10 लाख रुपये है। आइस स्केटिंग एक महंगी प्रतियोगिता मानी जाती है और इसकी ट्रेनिंग भी काफी मुश्किल होने के साथ-साथ खर्चीली रहती है।
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क्या है फिगर स्केटिंगसाल 1882 से एक स्पोर्ट्स के रूप में फिगर स्केटिंग को खेलना शुरू किया गया। 1908 में हुए लंदन ओलिंपिक गेम्स में पहली बार फिगर स्केटिंग को शामिल किया गया। साल 1924 में इसे पहली बार फ्रांस के शैमॉनिक्स में आयोजित विंटर ओलिंपिक गेम्स के आधिकारिक कार्यक्रम में शामिल किया गया, जिसके बाद से यह इसका हिस्सा है। यह भारत में उसी समय के दौरान ब्रिटिश द्वारा एक खेल के रूप में इसे पेश किया गया था। फिगर स्केटिंग में व्यक्तिगत, मिश्रित और ग्रुप्स में आइस पर स्केटिंग की जाती है।
Source: Sports