अयोध्या पर आज से अंतिम सुनवाई, धारा 144

नई दिल्ली
में आज से की आखिरी दौर की सुनवाई आज से शुरू होने जा रही है। अब तक कुल 37 दिनों की बहस के दौरान हिंदू पक्षों की दलीलें पूरी हो चुकी हैं और वरिष्ठ वकील राजीव धवन संवैधानिक पीठ के सामने मुस्लिम पक्ष की दलीलें रख रहे हैं। दशहरा की हफ्तेभर की छुट्टी के बाद सुप्रीम कोर्ट में 38वें दिन की कार्यवाही शुरू होगी तो मुस्लिम पक्ष आगे की दलीलें रखेगा। राजनीतिक और सांप्रदायिक तौर पर इस बेहद संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने की उम्मीद में अयोध्या जिला प्रशासन ने धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दिया है जो 10 दिसंबर तक कायम रहेगा।

17 अक्टूबर तक खत्म होगी बहस प्रक्रिया
बहरहाल, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने मुस्लिम पक्ष से कहा है कि वह 14 अक्टूबर तक अपनी दलीलें पूरी करे। उसके बाद दो दिन, 15 और 16 अक्टूबर को हिंदू पक्ष को जवाबी दलील देने का मौका मिलेगा। पीठ ने बहस की पूरी कार्यवाही 17 अक्टूबर को खत्म करने की समयसीमा तय कर रखी है।

पढ़ें:

17 नवंबर तक फैसला आने की उम्मीद
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर की संविधान पीठ ने इस जटिल मुद्दे का सौहार्दपूर्ण हल निकालने के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया के नाकाम होने के बाद 6 अगस्त से प्रतिदिन की कार्यवाही शुरू की थी। पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के उस फैसले के खिलाफ 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है, जिसमें रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद की विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सभी सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच समान बंटवारे का आदेश दिया गया था। उम्मीद की जा रही है कि 17 नवंबर को बहस की प्रक्रिया खत्म होने के एक महीने के अंदर यानी 17 नवंबर तक अयोध्या केस का बहुप्रतीक्षित फैसला आ जाएगा।

अयोध्या जिले में निषेधाज्ञा लागू
उधर, संभावित फैसले से पहले अयोध्या जिले में धारा 144 लगा दी गई है। जिले के डीएम अनुज कुमार झा ने जिले में धारा 144 लगाने की जानकारी देते हुए कहा कि यह फैसला पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के आखिरी दौर में पहुंचने के मद्देनजर लिया है। डीएम ने कहा कि चूंकि अगले महीने इस विवाद में फैसला आने की उम्मीद है, इसलिए शांति बनाए रखने के लिहाज से जिले में धारा 144 लागू करने का फैसला किया गया है।

पढ़िए:

कब, किसने किया केसगौरतलब है कि अयोध्या विवाद पर शुरुआत में निचली अदालत में पांच मुकदमे दायर हुए थे। पहला केस एक श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। उन्होंने कोर्ट से हिंदुओं को विवादित स्थल में प्रवेश कर पूजा करने का अधिकार दिए जाने की मांग की थी। उसी वर्ष परमहंस रामचंद्र दास ने भी कोर्ट से पूजा करने की अनुमति देने और राम लला की मूर्ति को केंद्रीय गुंबद, अब ध्वस्त विवादित ढांचे, में रखे जाने की मांग की थी। बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली थी।

वहीं, निर्मोही अखाड़े ने 1959 में निचली अदालत का रुख किया था और 2.77 एकड़ विवादित जमीन के प्रबंधन और ‘शेबायती’ (सेवक) का अधिकार देने की मांग की थी। इन सबके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंच गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना दावा किया।

फिर ‘राम लला विराजमान’ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल और राम जन्मभूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर पूरी विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद इन सभी मुकदमों को इलहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया।

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई
इलाहाबाद कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गईं थीं। शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। अब इन 14 अपीलों पर लगातार सुनवाई हो रही है।

Source: National Feed By RSS