दो वक्री ग्रह एक ही भाव मे होने पर क्या होता है प्रभाव जाने

रायपुर ,वक्री ग्रहों की दशा-अंतर्दशा के बारे में अभी भी ज्योतिष विज्ञान की स्थिति साफ नहीं है। बहुत से ज्योतिषाचार्य इसका लाभ उठा कर जातकों का मनोबल क्षीण कर देते हैं बदले में मनचाहा लाभ वसूल करते हैं। वक्री ग्रह कब और कैसा प्रभाव देंगे, इस बारे में जानना आवश्यक है, इसलिए आज का ये आलेख लिखा जा रहा है।
ज्योतिष का हर विद्वान जानता हैं की वक्रत्व पाँच ग्रहो मंगल,बुध,गुरु,शुक्र व शनि का विशेष गुण होता हैं जिनसे इन ग्रहों मे एक खास विशेषता जन्म ले लेती हैं जबकि वास्तव मे ग्रह वक्री अथवा पीछे की ओर जाने वाले कभी नहीं होते बल्कि धरती से हमें पीछे की और जाते दिखते हैं ज्योतिष ग्रंथ व ज्योतिष विद्वान ग्रहो के इस वक्रत्व को मानते व जानते अवश्य हैं परंतु इसके विषय मे ज़्यादा नहीं बताते हैं | इस विषय मे अभी बहुत से शोध किए जाने की आवशयकता हैं |
वस्तुतः कोई भी ग्रह कभी भी पीछे की ओर नहीं चलता वरन् ये भ्रम मात्र है। पृथ्वी से ग्रह की दूरी तथा पृथ्वी और उस ग्रह की अपनी गति के अंतर के कारण ग्रहों का उलटा चलना प्रतीत होता है। किंतु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कालीन समय पर ग्रहों की ऐसी उलटी गति के कारण उनका प्रभाव जीवन भर उनकी सामान्य गति से अलग होता है।
किंतु शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, वक्री ग्रह के फल देने के निश्चित नियम हैं। यदि कोई ग्रह नीच का होकर वक्री है तब वह अतीव शुभ कारक होता है किंतु उच्च ग्रह वक्री होकर नीच का फल देता है। यदि कोई ग्रह अशुभ स्थान का अधिपति हो और वक्री होकर केंद्र में बैठा हो तो परम शुभ फल देने वाला हो जाता है।
यदि कोई ग्रह वक्री है किंतु किसी अन्य ग्रह के साथ युति संबंध बनाता हो तो ऐसे में उसका फल निश्चित करना कठिन है। इसके लिए गहन गणितीय गणना करनी आवश्यक है अन्यथा उसका फल जान सकना कठिन है।
यदि कोई शुभ ग्रह केन्द्र में वक्री होकर बैठा हो तो प्रायः अशुभ फलकर्ता हो जाता है किंतु त्रिकोण में बैठा हो तो उसका शुभ फल प्राप्त होता है। किंतु इसके विपरीत पाप ग्रह वक्री होकर केन्द्र में बैठने से शुभ फल प्राप्त कराता है जबकि त्रिकोण में वह अशुभ फल दाता हो जाता है।
सारे ग्रह सूर्य की गति अथवा भ्रमण के द्वारा नियंत्रित होते हैं जिनसे उनके भ्रमण अथवा गोचर पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता हैं जब भी कोई ग्रह किसी राशि विशेष मे होता हैं तब वह अपनी विशेषताओ के अतिरिक्त उस राशि से संबन्धित विशेषताए भी ग्रहण कर लेता हैं जिससे प्रश्न यह उठता हैं की ऐसे मे वह अपनी कितनी विशेषता दिखा पाता हैं हम यह भी पाते हैं की जब ज़्यादातर ग्रह एक ही राशि मे हो तब वह अपने अलग अलग फल ना देकर बिलकुल अलग प्रकार के मिले जुले फल ही प्रदान करने लगते हैं यह फल उस कुंडली के अनुसार फलित सूत्रो द्वारा जाने जा सकते हैं |जब दो या दो से अधिक ग्रह एक ही राशि मे हो और उनमे से कोई ग्रह वक्री हो तो फलित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता हैं उस वक्री ग्रह का फल क्या होगा यह बताने के लिए उसका विशेष अध्ययन करने की ज़रूरत पड़ती हैं अचानक होने वाली घटनाओ मे वक्री ग्रहो का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता हैं वह प्रभाव कैसा होगा शुभ होगा या अशुभ होगा यह उस ग्रह व संबन्धित कुंडली के द्वारा ही जाना जा सकता हैं क्यूंकी ज्योतिष के सिद्धान्त अनुसार कोई भी ग्रह अपने शुभ या अशुभ फल देने मे सक्षम होता हैं |

वक्री ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव

वक्री ग्रहो पर हमने अपने अनुभव के आधार पर बहुत सी कुंडलियों पर निम्न तथ्य पाये हैं |

1)वक्री ग्रह जातक विशेष के जीवन की कुछ घटनाओ पर अपना अधिकार अवश्य रखता हैं परंतु सभी घटनाओ पर नहीं |

2)ग्रह जो अशुभ भाव का स्वामी होता हैं केंद्र मे वक्री होकर शुभता देता हैं |

3)नीच का ग्रह केंद्र मे वक्री होकर ज़्यादा शुभता देता हैं जबकि ऊंच का ग्रह त्रिकोण मे वक्री होकर शुभता देता हैं |

4)शुभग्रह केंद्रस्वामी होकर केंद्र मे वक्री होकर शुभता नहीं देते बल्कि त्रिकोण मे होकर शुभता देते हैं जबकि पापग्रह केन्द्रस्वामी होकर केंद्र मे वक्री होकर शुभता देते हैं त्रिकोण मे शुभता नहीं देते परंतु दोनों अवस्थाओ मे ग्रहो के कारकत्व ही प्रभावित होते हैं |

5)वक्री ग्रह के संग बैठा ग्रह उस ग्रह से शुभाशुभ फल प्राप्त कर लेता हैं |

6)योगकारक ग्रह का तथा 6,8,12 भावो के स्वामियों का वक्री होना अशुभ होता हैं |

7)शुभग्रह वक्री होने पर शुभता अपनी दशा के उतरार्ध मे देते हैं जबकि पाप ग्रह वक्री होने पर अपनी दशा के आरंभ मे तो शुभता देते हैं परंतु दशा के अंत मे सारी शुभता अशुभता मे बदल देते हैं जैसे सप्तमेश वक्री होने पर अपनी दशा के आरंभ मे विवाह तो करवा देगा परंतु दशा अंत होते होते संबंध विच्छेद अथवा जीवन साथी की मृत्यु भी करवा देगा |

8)दशमेश वक्री होने पर अपनी दशा मे बहुत शुभफल देता हैं परंतु कार्यक्षेत्र हेतु मारक प्रभाव भी प्रदान करता हैं बहुधा इस दशा मे जातक अपना कोई नया काम कर लेते हैं जो सफल रहता हैं |

9)वक्री ग्रह जिस नक्षत्र मे रहता हैं उस नक्षत्र स्वामी के अनुसार फल ना देकर अपने अनुसार ही फल देता हैं |

10)दो वक्री ग्रह एक ही भाव मे होने पर अपना अलग अलग प्रभाव देते हैं मिश्रित प्रभाव नहीं देते |

11)वक्री ग्रह अपने कारकत्वों के फल देता हैं उस भाव के नहीं जिस भाव मे वह होता हैं चाहे स्वग्रही क्यूँ ना हो |

12)दशमेश व एकादशेश एक ही भाव मे होतो यह माना जाता हैं की एकादशेश दशमेश की शक्ति ग्रहण कर लेता हैं जिससे दशमेश प्रभावहीन हो जाता हैं परंतु यदि दशमेश वक्री होतो दशमेश की शक्ति बढ़ जाती हैं जिससे एकादशेश प्रभावहीन हो जाता हैं |

13)वक्री ग्रह दूसरे वक्री ग्रह से स्थान परिवर्तन करने पर अपने अपने भावो का फल बढ़ा देते हैं |

14)अष्टमेश यदि केन्द्रस्वामी भी हो तो वक्री होने पर बहुत शुभता देता हैं कैसे कर्क हेतु शनि |

15)शुभग्रह वक्री होने पर स्वयं से 12वे भाव के फल बढ़ा देते हैं जबकि पाप ग्रह वक्री होने पर अपने से दूसरे भाव का फल बढाते हैं |

16)जब कोई ग्रह केंद्र व त्रिकोण दोनों का स्वामी होकर वक्री होता हैं तो वह बहुत शुभ फल प्रदान करता हैं जैसे वृष हेतु शनि |

वक्री ग्रह बली होते हैं रास्ते से हटने के कारण उनमे बल होता हैं इस ग्रह से संबंध होने पर व्यक्ति सनकी,अपनी चलाने वाला एवं अविश्वसनीय होने के कारण शुभ नहीं माना जाता हैं | वक्री ग्रह अनिश्चिताओ का सामना कराते हैं शुभ ग्रहो का कुंडली मे वक्री होना जातक हेतु अशुभ होता हैं।

वक्री ग्रह 3,6,8,12 मे हो तो जीवन मे बार बार परेशानियाँ होती रहती हैं जब भी वक्री ग्रह का संबंध त्रिकोण या त्रिकोणेश से होता हैं प्रारब्ध योग कहलाता हैं जिसके अच्छे व बुरे दोनों प्रभाव होते हैं | लग्न,लग्नेश,चन्द्र,चंद्रेश अगर बली ग्रह हो तथा त्रिकोण मे वक्री ग्रह हो तो सकारात्मक प्रभाव होता हैं | वक्री गुरु का संबंध त्रिकोणेश से होतो ज़िंदगी की शुरुआत अच्छी नहीं होती परंतु आगे चलकर बहुत तरक्की होती हैं साथ साथ रक्त संबंधी दोष भी होते हैं | छठे भाव व षष्ठेश का संबंध वक्री ग्रह तथा दशम भाव दशमेश से हो तो कुछ खास पेशे जैसे जासूसी,वकालत,चोरी हेतु अच्छा होता हैं | वक्री ग्रहो को आध्यात्मिक दृष्टी से ध्यान व समाधि हेतु शुभ माना जाता हैं नवम भाव मे वक्री ग्रह धर्म विरुद्ध कार्य अथवा धर्म परिवर्तन करवा सकता हैं |
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भविष्यवक्ता
(पं.) डॉ. विश्वरंजन मिश्र, रायपुर
एम.ए.(ज्योतिष), बी.एड. पी.एच.डी.
मोबाईल :- 9806143000,
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