नई दिल्ली। मुस्लिम महिलाओं को एक साथ तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत से निजात दिलाने वाला ऐतिहासिक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 गुरुवार को लोकसभा से पारित हो गया। लगभग पांच घंटे तक चली बहस में विपक्ष की तरफ से सजा के प्रावधान को हटाने की मांग हुई। इसे संयुक्त प्रवर समिति में भेजे जाने की भी मांग की गई। उनका कहना था कि मुस्लिम महिलाओं की ओर से सजा का विरोध किया जा रहा है।
हालांकि जिस तरह सदन में राजनीतिक खींचतान और आरोप-प्रत्यारोप हुए और अंतत: वोटिंग से पहले वॉकआउट ने यह साफ कर दिया है कि राज्यसभा की राह आसान नहीं होगी। कांग्रेस का यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछली बार कांग्रेस ने कुछ मांग के साथ इसका समर्थन किया था।
पिछले वर्ष भी लोकसभा से विधेयक पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में जाकर अटक गया था। जिसके बाद सरकार ने अध्यादेश लाकर इसे दंडनीय अपराध घोषित किया। नियम के मुताबिक अध्यादेश छह महीने तक ही प्रभावी रहता है या फिर इस दौरान संसद सत्र होने पर उसे संसद से पास कराना होता है।
विपक्ष के विरोध के चलते सरकार ने विधेयक में कुछ संशोधन करके कानून को थोड़ा लचीला किया है। नये विधेयक में तीन तलाक पर तीन साल की सजा का तो प्रावधान है लेकिन उसे समझौते योग्य और पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद जमानत दिये जाने का प्रावधान भी शामिल किया गया है। शिकायत भी पीड़िता या उसका करीबी रिश्तेदार ही करा सकता है।